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Problem Solving Method of Teaching in hindi

समस्या समाधान विधि (problem solving method).

समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थकों में किलपैट्रिक और जान ड्यूवी का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने पाठशाला कार्य को इस तरह से व्यवस्थित करने का प्रयास किया जिससे छात्र वास्तविक समस्या का अनुभव करें और मानसिक स्तर पर उसका हल ढूंढने के लिए प्रेरित हों। हमारे जीवन में पग-पग पर समस्याओं का आना स्वाभाविक है और हम इनका तर्क युक्त समाधान भी ढूंढने का प्रयास करते हैं। यदि हम तर्क के साथ किसी समस्या के समाधान की दिशा में प्रयास करते हैं तो निश्चित ही हम किसी न किसी लक्ष्य पर पहुँचते हैं और समस्या का समाधान कर लेते हैं। तर्क पूर्ण ढंग से समस्या की रुकावटों को हल करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही समस्या समाधान विधि के अन्तर्गत आता है।

Problem Solving Method of Teaching in hindi

(i) लेविन ने समस्या समाधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "एक समस्यात्मक स्थिति, एक रचनाहीन या असंरचित जीवन स्थल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है।"

(ii) स्किनर के अनुसार, "समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उपस्थित करने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।”

(iii) जॉन ड्यूवी के मतानुसार, "समस्या हल करना तर्कपूर्ण चिन्तन के ताने बाने से बुना हुआ है। समस्या लक्ष्य का निर्धारण कर देती है और लक्ष्य ही चिन्तन प्रक्रिया को नियन्त्रित करता है।"

(iv) रिस्क के अनुसार, "समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया योजनाबद्ध कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी विद्वान के विचारों की तर्क रहित स्वीकृति नहीं है बल्कि यह विचारशील चिन्तन प्रक्रिया है।"

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जब कोई व्यक्ति ज्ञान तथ्यों के आधार पर उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों से भटक जाता है तो उसमें तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है और यह तनाव तभी कम होता है जब इसका अन्त उस समस्या के समाधान के रूप में सामने आता है। लेविन की परिभाषा में जीवन स्थल शब्द का प्रयोग किया गया है। लेविन का जीवन स्थल से अभिप्राय व्यक्ति के चहुं ओर के वातावरण से है। इसी क्षेत्र में जब कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो व्यक्ति के सम्मुख समस्या उत्पन्न होती है और समस्या की कठिनाइयां उसे समस्या समाधान करने के लिए प्रेरित करती है। इस समाधान की स्थिति तक प्रयास करते हुए पहुँचना ही समस्या समाधान कहलाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी समस्या समाधान विधि के माध्यम से छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का तर्कपूर्ण चिन्तन कर स्वयं ही इन समस्याओं का हल ढूंढने के लिए प्रेरित किया जाता है और उनकी शिक्षण प्रक्रिया आगे बढ़ती है।

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps in Problem Solving)

समस्या समाधान विधि के निम्न सोपान हैं-

1. चिन्ता:- समस्या समाधान विधि का प्रथम सोपान चिन्ता है। इस सोपान में किसी परिस्थिति को छात्रों के सम्मुख इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि वे इसके प्रति कठिनाई महसूस करे और चिन्तित हो तथा उन्हें यह भी अहसास हो कि वह इस कठिनाई का हल किसी पूर्व निश्चित विधि के माध्यम से नहीं कर पायेगे। ऐसी स्थिति में वे इस समस्या या परिस्थिति को कठिनाइयों को हल करने के लिए प्रयास करेंगे। तर्कपूर्ण चिन्तन के लिए बाध्य होंगे।

2. परिभाषा:- समस्या समाधान विधि के इस दूसरे सोपान में समस्या से सम्बन्धित कठिनाई को परिभाषित किया जाता है और उसकी स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। प्रत्येक समस्या से जुड़ी हुई कई छोटी-छोटी समस्यायें भी होती हैं। इन समस्याओं को भी छात्रों को विस्तारपूर्वक समझाया जाता है और फिर उनके निराकरण को विधि भी निर्धारित कर दी जाती है। यही समस्या समाधान विधि का दूसरा सोपान समाप्त होता है।

3. निराकरण प्रयास:- समस्या समाधान का तीसरा सोपान समस्या के निराकरण के लिये किये गये प्रयासों का सोपान है। इसमें समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन प्रयोग व विचार विमर्श किया जाता है। उनका वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया जाता है। पूर्व निश्चित सिद्धान्तों का भी पुनः निरीक्षण किया जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के उपकरणों और यन्त्रों आदि का भी सहारा लेना होता है। यदि समस्या का आकार बहुत बड़ा होता है तो उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

4. अनुमान या उपकल्पना:- तीसरे सोपान में समस्या के समाधान से सम्बन्धित जिन तथ्यों को एकत्र किया जाता है इस सोपान में उनका विश्लेषण किया जाता है। इस क्रिया में कक्षा के सभी छात्र अपना-अपना सहयोग देते हैं। समस्या समाधान के बारे में एक उपकल्पना तैयार को जाती है और इस उपकल्पना को एकत्रित सभी प्रश्नों में से अधिकांश प्रश्नों की पुष्टि करती है। उसे ही अन्तिम स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है और यह समझ लिया जाता है कि इसके माध्यम से ही समस्या का समाधान किया जाना सम्भव है। यही परिकल्पना कहलाती है। इसके पश्चात् इस उपकल्पना के माध्यम से समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

5. मूल्यांकन:- समस्या समाधान विधि के इस अन्तिम सोपान में निर्मित की गई उपकल्पना का पुनः प्रयोग करते हुए इसकी सत्यता को पुनः परखा जाता है। ऐसा करने के लिए इस उपकल्पना को अन्य सीखी हुई बातों के साथ सम्बन्धित किया जाता है और पूर्व अनुभवों के आधार पर इसकी सत्यता को आंका और जाँचा जाता है। इसके पश्चात् निर्णय की स्थिति आती है और समस्या का समाधान कर लिया जाता है।

ध्यान रहे कि इन पाँचों सोपानों में पहले चार सोपान आगमन विधि के है और पाँचवा और अन्तिम सौपान निगमन विधि का है। यह पाँचों पद एक दूसरे से पूरी तरह से गुथे हुए तथा सम्बन्धित होते हैं। इन्हें एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता।

समस्या समाधान विधि के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें (Things to Note in Using Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि कक्षा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सरल और स्वाभाविक विधि है। कक्षा में इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिये-

  • तार्किक चिन्तन के लिये एक प्रेरक का होना आवश्यक है। क्योंकि बिना किसी प्रेरणा के छात्र समाधान के लिये प्रयास नहीं करेगा।
  • स्वस्थ संकल्पना (Sound concepts) के आधार के रूप में बालक बाह्य संचार की वस्तुओं का ताजा ज्ञान अवश्य रखे। इनके अभाव में इनका प्रतिनिधित्व करने वाले उदाहरणों को सामने रखना चाहिये।
  • इनके साथ-साथ बालक के शब्द-ज्ञान (भाषा-ज्ञान) का भी उत्तरोत्तर क्रमिक विकास होना चाहिये। चिन्तन के लिये भाषा एक आवश्यक तत्त्व है।
  • तार्किक चिन्तन का बीज तत्त्व समझ या बुद्धि तत्त्व है जो कि बहुत कुछ जन्मजात सामान्य योग्यताओं पर निर्भर करती है।
  • तार्किकता बहुत कुछ सम्बन्धित विषय-सामग्री के परिचय या जानकारी पर निर्भर करती है चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल। इसलिये विशिष्ट विषय के लिये विशिष्ट प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिये। हम गणित या लैटिन में प्रशिक्षण देकर अर्थशास्त्र या सामाजिक समस्याओं के विषय में तर्क शक्ति का प्रशिक्षण नहीं दे सकते।
  • कुछ तर्कशास्त्र या वैज्ञानिक विधियों के सामान्य सिद्धान्तों की जानकारी अवश्य करा देना चाहिये और विभिन्न की समस्याओं के लिये उसका उपयोग कराना चाहिए।
  • मानवीय विचार का प्रत्येक विभाग अपना विशिष्ट चरित्र, भ्रांतियाँ एवं खतरा रखता है। गणित उच्चस्तरीय ज्ञान एवं प्रशिक्षण मनोविज्ञान और शिक्षा में तर्क की सफलता के लिये दावा नहीं कर सकता।
  • विभिन्न प्रकार के तथ्यों (facts) को ढूंढ निकालने के लिये विशेष या ज्ञान होना आवश्यक है।

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्न प्रकार हैं-

  • मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ यह विधि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है। इस विधि में बालक वैज्ञानिक ढंग से ही ज्ञान को अर्जित करते हैं और शिक्षण सम्बन्धी सभी प्रक्रियायें वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न होती है।
  • समस्या समाधान विधि द्वारा छात्रों की अनेक क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि छात्रों को क्रियायें करने के लिए प्रेरित करती है। समस्या स्वयं ही अपने आप में एक प्रेरक है। समस्या समाधान विधि छात्रों की समस्या का समाधान करने के लिए प्रेरित करती है।
  • इस विधि में छात्रों एवं शिक्षक के बीच अधिक सम्पर्क होने के कारण छात्र और शिक्षक के व्यवहार सौहार्दपूर्ण तथा सामंजस्यपूर्ण बनते हैं और शिक्षकों के निर्देशन को वह सहर्ष स्वीकार करते हैं।
  • समस्या समाधान विधि एक लचीली विधि है और इसका प्रयोग किसी भी शिक्षण परिस्थिति में सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से प्रजातान्त्रिक है। इसमें छात्र स्वयं अपनी समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार प्रजातन्त्र में मानव व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है ठीक उसी प्रकार इस विधि में भी छात्रों के व्यक्तित्व को समस्या समाधान की दिशा में विशेष महत्व दिया गया है।
  • समस्याओं को हल करने के लिए छात्रों को समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्र करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं, तर्क वितर्क करना पड़ता है, चिन्तन करना पड़ता है जिससे छात्रों का मानसिक विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि तर्क एवं आलोचना के द्वार खोलती है जिससे चालकों की मानसिक शक्तियों का विकास सम्भव होता है।
  • इस विधि द्वारा चूंकि बालकों को समस्या का समाधान अपने प्रयासों से स्वयं हो खोजना होता है अतः छात्र अधिक से अधिक प्रयास कर अध्ययन कर वार्तालाप के माध्यम से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं जिससे उनमें परिश्रम की आदत का विकास होता है और रचनात्मक प्रवृत्ति विकसित होती है।

समस्या समाधान विधि के दोष (Defects of Problem Solving Method)

  • इस विधि से शिक्षण प्रक्रिया को चलाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। धीमी गति के कारण निर्धारित पाठ्यक्रम वर्ष भर में पूरे नहीं हो पाते। जो ज्ञान शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों से 1 वर्ष में दे पाते हैं वह इस विधि द्वारा दिया जाना सम्भव नहीं है।
  • इस विधि द्वारा छात्रों की सभी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास किया जाना सम्भव नहीं है। इसी कारण इस विधि को एकागी विधि स्वीकार किया गया है।
  • यह विधि छोटे बच्चों के शिक्षण के लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है। इस विधि में चूंकि तर्क पर विशेष बल दिया गया है और छोटे बच्चों द्वारा तर्क के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया सम्भव नहीं है।
  • समस्या समाधान विधि अरुचिपूर्ण विधि है। इस विधि से शिक्षण की प्रक्रिया नीरस हो जाती है।
  • इस विधि से शिक्षण का संचालन करने के लिए योग्य शिक्षकों को बहुत आवश्यकता है। योग्य शिक्षकों के अभाव में यह विधि सफलतापूर्वक अपनायी नहीं जा सकती।

समस्या समाधान विधि में शिक्षक का स्थान (Teacher's Place in Problem Solving Method)

इस विधि के छात्र केन्द्रित होने के कारण और छात्रों के व्यक्तिगत कार्यों पर अधिक बल दिया गया है। इस कारण अक्सर यह भ्रान्ति हो जाती है कि इस विधि में शिक्षकों की कोई विशेष भूमिका नहीं है। किन्तु यह सोच बिल्कुल निरर्थक और सही नहीं है। वास्तव में शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया की वह महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके अभाव में शिक्षण प्रक्रिया का समपन्न होना सम्भव नहीं है। इस विधि में भी शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शिक्षक ही है जो समस्याओं को प्रभावपूर्ण ढंग से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं जिनमें छात्र इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित हो तथा बाध्य हो। शिक्षक को हर कदम पर यह भी ध्यान रखना होता है कि छात्रों की रुचि इसमें बनी रहे। समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्रित करते समय भी छात्रों को शिक्षक के निर्देशन की आवश्यकता होती है।

शिक्षक के निर्देशन के अभाव में छात्र अनुपयुक्त सामग्री का संग्रह कर बैठते हैं जो किसी भी प्रकार से समस्या के समाधान में सहायक नहीं होती। छात्रों को अनुमानों के आधार पर शीघ्र ही निष्कर्षो पर पहुंचने से बचाना भी शिक्षक का ही दायित्व होता है। शिक्षक को इस बात का पूर्ण रूप से निरीक्षण करना होता है कि छात्र सही दिशा में कार्यरत हैं और यदि उनकी दिशा गलत है तो शिक्षक को छात्रों का मार्गदर्शन करना होता है। संक्षेप में कदम-कदम पर शिक्षक का निर्देशन छात्रों के लिए बहुत आवश्यक है। अतः कहा जा सकता है कि यह सोचना कि समस्या समाधान विधि में शिक्षक का कोई महत्व एवं भूमिका नहीं है एक गलत धारणा ही है।

  • Small Group Instruction Method of Teaching in hindi
  • Flipped Classroom Teaching Method in hindi
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Target Notes

समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि पर टिप्पणी लिखिये।

समस्या समाधान विधि :- समस्या समाधान विधि का लंबे समय तक गणित और विज्ञान से जुड़ाव रहा। किंतु आज इसे सामाजिक अध्ययन की प्रमुख विधियों में से एक माना जाता है। इसकी एक विधि की महत्ता को स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि हमारे लोकतांत्रिक समाज में बच्चों के लिए समस्या समाधान निश्चित रूप से आवश्यक है।

समस्या समाधान को लेकर अनेक प्रकार के शोध मनोवैज्ञानियों द्वारा किए गए है। चूंकि इनमें से अधिकांश शोध प्रयोगशाला की स्थितियों में किए गए हैं और इनसे संबंधित प्रतिवेदन/शोध पत्र इतनी तकनीकी भाषा में लिखे गए हैं कि शिक्षकों को उन्हें समझने में काफी परेशानी आती है। आसान शब्दों में, समस्या समाधान को हम प्रगतिशील कदमों की एक श्रृंखला मान सकते हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा तव प्रयोग किए जाते हैं जब वह किसी समस्या को हल करने के क्रम में हो। समस्या समाधान कोई एक कार्य न होकर निम्नलिखित कई कार्यों का समावेश है।

  • पहला स्तर जब व्यक्ति किसी समस्या जिसका समाधान आवश्यक है से रूबरू होता है।
  • आंकड़ा संग्रहण स्तरं जब व्यक्ति समस्या को बेहतर समझने की कोशिश करता है और समाधान के लिए सामग्री जुटाता है।
  • इस स्तर पर व्यक्ति कुछ संभावित हल तैयार करता है।
  • इस स्तर पर संभावित उत्तरों को जांचा जाता है।

सामाजिक अध्ययन की प्रायः सभी पाठ्यपुस्तकें समस्या समाधान विधि के रूप में उपरोक्त स्तरों के प्रयोग का समर्थन करती है। यह उल्लेखनीय है कि ये सभी स्तर जॉन ड्यूवी द्वारा आलोचनात्मक चिंतन के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि डिवी के द्वारा आलोचनात्मक चिंता के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि ड्यूवी का यह भी कहना है ‘चिंतन बुद्धिमत्तापूर्ण अधिगम का माध्यम है ऐसा अधिगम जिसमें मस्तिष्क शामिल भी रहता है और समृद्ध भी होता है।”

शिक्षकों द्वारा समस्या समाधान का प्रयोग

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समस्या समाधान महत्वपूर्ण है अतः एक अनुमान लगा सकते हैं कि शिक्षक इसे एक प्रमुख माध्यम के रूप में प्रयोग करते होंगे। यद्यपि वास्तविक स्थिति हमें निराश ही करती है। कई शोध यह दर्शाते हैं कि शिक्षक सामाजिक अध्ययन में समस्या समाधान विधि को उचित महत्व नहीं देते और प्रयोग में नहीं लाते। अधिकांश शिक्षक बच्चों को तथ्यों और अवधारणाओं से परिचित करवाने तक ही सीमित रहते हैं। कुछ इससे आगे बढ़कर ‘सही’ अभिवृत्ति विकसित करने पर जोर देते हैं। ऐसी कोई गतिविधि, जिसमें बच्चे स्वयं सोचकर समाधान करके सीख सकें, व्यापक रूप से अनुपलब्ध है।

1. सबसे पहले शिक्षकों को सामाजिक अध्ययन को किसी पाठ्यपुस्तक के कुछ पन्नों के सीमित दृष्टिकोण से छूटकर एक व्यापक विषय के रूप में देखना होगा। यह दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है।

2. शिक्षकों की कार्ययोजना भी इस प्रकार बनानी चाहिए कि बच्चे समस्या से परिमित हो सकें और शिक्षक के मार्गदर्शन में उसका हल भी खोज सकें।

3. शिक्षक की भूमिका बच्चों को अलग-अलग प्रकार की पुस्तकें और स्त्रोंत प्रयोग करने में प्रोत्साहित करने की होनी चाहिए। समस्या समाधान बच्चों की वस्तुओं में तुलना में करने, संबंधों को खोजने और अध्ययन करने के लिए अवसर प्रदान करता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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समस्या समाधान विधि - problem solving method : shirswastudy, समस्या समाधान विधि  ( problem solving method ).

समस्या समाधान विधि , problem solving method

समस्या समाधान का अर्थ ( Meaning of problem resolution )

विद्यार्थियों को शिक्षण काल में अनेक समस्याओं या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिनका समाधान उसे स्वयं करना पड़ता है। समस्या समाधान का अर्थ है लक्ष्य को प्राप्त करने आने समस्याओं का समाधान   इसको समस्या हल करने की विधि भी कहते हैं।

व्याख्यान प्रदर्शन विध

व्याख्यान विधि

समस्या समाधान विधि परिभाषा ( Problem Resolution Method Definition )

वुडवर्थ ( Woodworth) “ समस्या-समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसन हों तो समस्या आती ही नहीं।"

स्किनर ( Skinner) “ समस्या-समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सर्जनात्मक चिंतन तथा तर्क दोनों होते हैं।"

समस्या समाधान विधि के महत्व (Importance of problem solving method )

समस्या समाधान विधि मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक विधि है। समस्या विद्यार्थी के पाठ्यवस्तु से संबंधित होती है। इसमें छात्र को करके, सीखने के अवसर उपलब्ध होते हैं। 

इस विधि में विद्यार्थी के सामने एक समस्या रखी जाती है और विद्यार्थी उसका हल ढूंढने के लिए प्रयास करता है। अध्यापक हल ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।

अन्वेषण विधि

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps of Problem Solving Method)

  • समस्या की पहचान

a.    समस्या का स्पष्ट विवरण अथवा समस्या कथन

b.    समस्या का स्पष्टीकरण विद्यार्थियों द्वारा आपस में चर्चा

c.    समस्या का परिसीमन समस्या का क्षेत्र निर्धारित करना

  • परिकल्पना का निर्माण - जांच एवं परीक्षण के लिए परिकल्पना का निर्माण।
  • प्रयोग द्वारा परीक्षण - परिकल्पनाओं का परीक्षण करना
  • विश्लेषण
  • समस्या के निष्कर्ष पर पहुंचना

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of the Problem Solving Method)

  • विधि से विधार्थी सहयोग करके सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • दाती समस्या को हल करने की प्रक्रिया में शामिल होकर उसे हल करना सीखते हैं।
  • विद्यार्थी परिकल्पना निर्माण करना सीखते हैं और इस प्रक्रिया से उसकी कल्पनाशीलता में वृद्धि होती है।
  • विद्यार्थी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
  • यह विधि विद्यार्थी में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास में सहायक हैं।

समस्या समाधान विधि के दोष Problem resolution method faults

  • इस विधि के प्रयोग में समय ज्यादा लगता है।
  • पाठ्य-पुस्तक का अभाव होता है।
  • इस विधि में त्रुटियाँ प्रभावहीन के कारण होती है।
  • गति धीमी रहती हैं।
  • इस विधि से हर विषय वस्तु का शिक्षण नहीं किया जा सकता है।
  • समस्या उचित रूप से चुनी हुई न हो तो वह असफल रहती हैं।
  • चूंकि इस विधि में प्रायोगिक कार्य भी करना होता है। अतः शिक्षक का प्रायोगिक कार्य में दक्ष होना आवश्यक होता है।

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Teaching Methods In Hindi – शिक्षण विधियां अर्थ, परिभाषा और महत्व

Tomy Jackson

अगर आप बीएड कर रहे हैं तो Teaching Methods के बारे में समझना आपके लिए बेहद जरूरी है । बीएड करने के पश्चात आप एक शिक्षक बनते हैं और एक शिक्षक के तौर पर पूरे जीवनकाल में हजारों बच्चों को प्रभावित करते हैं । ऐसे में आपको पता होना चाहिए कि सही शिक्षण विधि क्या होनी चाहिए और किस प्रकार छात्रों को शिक्षा दी जानी चाहिए ।

Bachelor of Education Course में विस्तार से टीचिंग मेथड्स के बारे में समझाया जाता है । इसका फायदा यह होता है कि भावी शिक्षक यह समझ पाते हैं कि किस परिस्थिति में कौनसा शिक्षण विधि सटीक है और क्यों । अगर आप बीएड कर रहे हैं तो आपके लिया यह पूरा कांसेप्ट आसान शब्दों में समझना जरूरी है क्योंकि यह आपको परीक्षा में पूछा जायेगा ।

इसलिए हमने इस आर्टिकल में आपके लिए Teaching Methods की जानकारी सांझा की है । हमारी कोशिश रहेगी कि आपको भारी भरकम शब्दों में कांसेप्ट को समझाने के बजाय, जितना हो सके आसान शब्दों में शिक्षण विधियां समझाई जाएं । इससे आपको पूरा कांसेप्ट भी जीवन भर के लिए याद हो जायेगा और आप परीक्षा में भी अच्छे अंक स्कोर कर पाएंगे ।

Teaching Methods क्या है ?

problem solving method of teaching hindi

Teaching Methods यानि शिक्षण विधियां उन तकनीकों और रणनीतियों को संदर्भित करता है जिनका उपयोग शिक्षक कक्षा में सिखाने और निर्देश को सुविधाजनक बनाने के लिए करते हैं । उदाहरण के तौर पर चर्चा विधि/पद्धति में शिक्षक छात्रों को एक अवधारणा या कौशल का प्रदर्शन करता है और छात्र उसका अनुसरण करते हैं ।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी परिस्थिति में कोई भी शिक्षण विधि का पालन नहीं किया जाना चाहिए । अर्थात अगर छात्र के आलोचनात्मक विचार कौशल को विकसित करना है तो प्रदर्शन विधि का कोई मतलब नहीं रह जाएगा । इस परिस्थिति में पूछताछ-आधारित या समस्या-आधारित शिक्षण विधि ही सबसे प्रभावी होगी ।

इसी तरह अन्य कई कारक हैं जिन्हें ध्यान में रखकर ही Effective Teaching Methods का अनुप्रयोग किया जाता है, इन कारकों के बारे में हम नीचे संक्षेप में समझेंगे । उम्मीद है कि यहां तक आप शिक्षण विधि का अर्थ समझ गए होंगे ।

शिक्षण विधि की परिभाषा

देश दुनिया के अलग अलग विद्वानों में शिक्षण विधि की परिभाषा अलग अलग दी है । हालांकि इन परिभाषाओं में कई बातें एक जैसी ही दिखलाई पड़ती हैं । चलिए कुछ Definitions of Teaching Method पर गौर करते हैं ।

1. गैग्ने और ब्रिग्स (1979): “एक शिक्षण विधि शिक्षण प्रक्रियाओं और मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की एक व्यवस्थित और व्यवस्थित व्यवस्था है जो छात्रों को सीखने की स्थिति प्रदान करती है ।”

2. स्मिथ और रागन (1999): “सामान्य सिद्धांत, शिक्षाशास्त्र और कक्षा निर्देश के लिए उपयोग की जाने वाली प्रबंधन रणनीतियाँ ।”

3. McKeachie और Svinicki (2014): “रणनीतियों और तकनीकों का एक सेट जो एक शिक्षक छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में शामिल करने के लिए उपयोग करता है ।”

4. शुलमान (1987): “वह साधन जिसके द्वारा शिक्षक किसी विषय के अपने ज्ञान को एक ऐसे रूप में अनुवादित करते हैं जिसे छात्र समझ सकें ।”

शिक्षण विधियों के प्रमुख कारक

Types of Teaching Method समझने से पहले आपको यह समझना चाहिए कि आखिर ये विधियां किन कारकों से प्रभावित होती हैं । हर परिस्थिति के लिए अलग अलग शिक्षण विधि तैयार की गई है और इसलिए जरुरी है कि आप सभी शिक्षण विधि के कारकों को समझें ।

1. छात्रों की सीखने की शैली और जरूरतें: हर छात्र एक जैसा नहीं हो सकता और इसलिए उनके लिए शिक्षण विधियां भी अलग अलग होनी चाहिए । किसी भी शिक्षण विधि या रणनीति को चुनते समय सबसे पहले यह तय करना चाहिए कि छात्रों के सीखने की उपयुक्त शैली क्या है और उनकी जरूरतें क्या हैं ।

2. मौजूद संसाधन: Teaching Methods तो कई सारे हैं लेकिन क्या हो अगर उनका अनुसरण करने के लिए शिक्षक या शिक्षण संस्थान के पास पर्याप्त संसाधन ही न हो ? इसलिए कौन सी शिक्षण विधि प्रयोग में लाई जायेगी, यह मौजूद संसाधनों के हिसाब से भी तय होता है ।

3. मौजूद समय: परीक्षा के नजदीकी दिनों में और आम दिनों में शिक्षण विधि अलग अलग हो जाती है । ऐसा क्यों ? मौजूद समय की वजह से । जब परीक्षा नजदीक होती है तो मुख्य रूप से चर्चा पद्धति और पूछताछ आधारित पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है । लेकिन आम दिनों में प्रदर्शन शिक्षण पद्धति आमतौर पर अनुसरण की जाती है ।

4. शिक्षक प्राथमिकताएं और अनुभव: शिक्षण विधियां कई बार शिक्षक की व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और अनुभवों पर भी आधारित होता है । कई शिक्षकों के लिए प्रदर्शन शिक्षण पद्धति ज्यादा सुगम लगती होगी तो वहीं कइयों के लिया व्याख्यान शिक्षण पद्धति ।

5. शिक्षण लक्ष्य: Teaching Methods कौन सा चुना जायेगा, यह निर्भर करता है कि शिक्षण लक्ष्य क्या है । उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि अगर एक शिक्षक चाहता है कि उनके छात्र पाचन तंत्र को अच्छे से समझें तो इस परिस्थिति में व्याख्यान शिक्षण पद्धति से ज्यादा असरदार होगी मल्टीमीडिया शिक्षण पद्धति ।

Important Methods of Teaching

शिक्षण विधियां कई हैं लेकिन अगर आप बीएड की तैयारी कर रहे हैं तो कुछ शिक्षण विधियां सबसे महत्वपूर्ण हैं और उनसे संबंधित प्रश्न अक्सर परीक्षा परीक्षा में पूछे जाते हैं । हम एक एक करके सभी महत्वपूर्ण शिक्षण विधियों के बारे में उदाहरण के साथ जानेंगे ।

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1. परियोजना आधारित शिक्षण विधि

Project-based method यानि परियोजना आधारित शिक्षण के अंतर्गत शिक्षक द्वारा छात्रों को परियोजना कार्य दिया जाता है । इस परियोजना कार्य को एक या एक से ज्यादा छात्र मिलकर करते हैं और उन्होंने कक्षा में अबतक क्या सीखा है, उस ज्ञान का प्रयोग करते हैं ।

आमतौर पर परियोजना-आधारित शिक्षण विधि का उपयोग विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विषयों में किया जाता है । उदाहरण के तौर पर वर्षा जल संचयन प्रणाली मॉडल तैयार करना, कोई शोध पत्र लिखना या रोबोट तैयार करना आदि परियोजना आधारित शिक्षण विधि में शामिल हो सकता है ।

2. शिक्षण की व्याख्यान विधि

दूसरे स्थान पर है Lecture method यानि व्याख्यान शिक्षण विधि । यह सबसे पारंपरिक और आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली शिक्षण पद्धति है । इस पद्धति में, शिक्षक किसी विशेष विषय पर व्याख्यान देता है और छात्र सुनते हैं फिर नोट्स लेते हैं । आपके स्कूल और कॉलेज में भी यही विधि का इस्तेमाल लगभग रोज ही किया जाता होगा ।

आमतौर पर व्याख्यान विधि का उच्च कक्षाओं में प्रयोग होता है, जब छात्र मानसिक रूप से एक ठीक ठाक स्तर तक विकसित हो जाते हैं । इसमें शिक्षक ही ज्ञान का मुख्य स्रोत है और छात्रों से यह उम्मीद की जाती है कि वे शिक्षक की बातें सुनें और जो जरुरी बिंदु हों, उन्हें नोट करते चलें ।

3. मल्टीमीडिया शिक्षण विधि

Multimedia Teaching Method आधुनिकीकरण की देन है । इस शिक्षण पद्धति में छात्रों को टेक्नोलॉजी की मदद से किसी विषय पर ज्ञान प्रदान किया जाता है । इसमें सीखने के अनुभव को बेहतर करने के लिए वीडियो, इमेज और ऑडियो रिकॉर्डिंग जैसे विभिन्न मल्टीमीडिया टूल का उपयोग शामिल है ।

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इसे आसान से उदारण की मदद से समझें । अगर अगर आप एक शिक्षक हैं और आपको अपने छात्रों को छत्रपति महाराणा प्रताप के बारे में जानकारी देनी है तो आप व्याख्यान विधि का इस्तेमाल आसानी से कर सकेंगे लेकिन अगर प्रजनन प्रणाली की जानकारी देनी हो तो मल्टीमीडिया शिक्षण विधि से बेहतर कोई विधि आपको नहीं सूझेगी । यानि आप वीडियो और तस्वीरों के सहारे आसानी से छात्रों को प्रजनन प्रणाली की जानकारी सहज तरीके से दे सकते हैं ।

4. परियोजना आधारित शिक्षण विधि

परियोजना आधारित शिक्षण में आमतौर पर एक से ज्यादा छात्र शामिल होते हैं और उन्हें किसी खास विषय पर परियोजना बनाने के लिए दिया जाता है । ध्यान रहे कि उन्हें वही परियोजना कार्य दिया जाता है जिसके बारे में पहले से ही शिक्षक जानकारी दे चुके हों ।

यानि इस पद्धति में एक परियोजना या असाइनमेंट पर काम करने वाले छात्रों को शामिल किया जाता है, जिसके लिए उन्हें कक्षा में सीखे गए ज्ञान और कौशल को लागू करने की आवश्यकता होती है । परियोजना-आधारित पद्धति का उपयोग अक्सर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विषयों में किया जाता है ।

छात्र परियोजना-आधारित पद्धति के माध्यम से कई कौशल सीखते हैं जैसे Critical Thinking, Problem Solving, Time Management और Team Management आदि ।

5. पूछताछ आधारित शिक्षण विधि

इस शिक्षण विधि में, शिक्षक एक व्याख्याता के बजाय एक सुविधाप्रदाता के रूप में कार्य करता है । वह छात्रों को पूछताछ, जांच और प्रतिबिंबित करने की प्रक्रिया के माध्यम से मार्गदर्शन करता है । इसका फायदा यह होता है कि छात्रों के अंदर आलोचनात्मक विचार कौशल का विकास होता है और वे किसी विषय को गहराई से समझ भी पाते हैं ।

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हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पूछताछ आधारित शिक्षण विधि थोड़ी चुनौतीपूर्ण है । यह इसलिए क्योंकि इस विधि में काफी समय खर्च होता है, इसे प्रयोग में लाने के लिए योजना बनानी पड़ती है और साथ ही छात्रों को सीखने की जिम्मेदारी खुद पर लेनी पड़ जाती है ।

6. चर्चा शिक्षण विधि

इस पद्धति में, शिक्षक छात्रों के बीच एक समूह चर्चा की सुविधा प्रदान करता है, उन्हें किसी विशेष विषय पर अपने विचारों और दृष्टिकोणों को साझा करने के लिए प्रोत्साहित करता है । चर्चा सभी विषयों में सीखने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह छात्रों को केवल जानकारी प्राप्त करने के बजाय इसे संसाधित करने में मदद करती है ।

Discussion Teaching Method में प्रतिभागी कई दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, दूसरों के विचारों का जवाब देते हैं, और अपने ज्ञान, समझ, या मामले की व्याख्या करने के प्रयास में अपने स्वयं के विचारों पर प्रतिबिंबित करते हैं ।

7. व्याकरण विधि

शिक्षण की व्याकरण विधि शिक्षण भाषा के लिए एक दृष्टिकोण है जो व्याकरण के नियमों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करती है और छात्रों को सीखने और समझने में मदद करने के लिए संरचित अभ्यासों और अभ्यासों का उपयोग करती है ।

इस पद्धति में, व्याकरण को भाषा सीखने की नींव के रूप में देखा जाता है, और छात्रों से भाषा के अन्य पहलुओं पर जाने से पहले व्याकरण के नियमों में महारत हासिल करने की उम्मीद की जाती है । इस शिक्षण विधि में छात्रों को व्याकरण नियमों से अवगत कराया जाता है, उन्हें कई अभ्यास सेट दिए जाते हैं और उनके द्वारा होने वाली गलतियों को शिक्षक सुधारते हैं ।

8. खेल विधि

शिक्षण की खेल पद्धति एक ऐसा दृष्टिकोण है जो छात्रों के लिए सीखने को अधिक आकर्षक और मनोरंजक बनाने के लिए खेल का उपयोग करता है । शिक्षण की खेल पद्धति में, पारंपरिक शिक्षण विधियों को बदलने के लिए खेलों का उपयोग किया जाता है । आमतौर पर यह Teaching Method कम उम्र के बच्चों को सिखाने पढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता है ।

शिक्षण की खेल पद्धति एक मूल्यवान दृष्टिकोण है जो छात्रों के लिए सीखने को अधिक आकर्षक और मनोरंजक बनाने में मदद कर सकता है । कक्षा में खेलों को शामिल करके, शिक्षक एक गतिशील और रोचक सीखने का माहौल बना सकते हैं जो रचनात्मकता, सहयोग और महत्वपूर्ण सोच कौशल को बढ़ावा देता है ।

9. प्रत्यक्ष विधि

Direct Teaching Method विदेशी भाषाओं को पढ़ाने का एक तरीका है जो कक्षा में लक्ष्य भाषा के उपयोग पर जोर देता है । इस पद्धति में, शिक्षक छात्र की मूल भाषा के उपयोग से बचता है और इसके बजाय व्याकरण, शब्दावली और भाषा के अन्य पहलुओं को पढ़ाने के लिए केवल लक्षित भाषा का उपयोग करता है ।

डायरेक्ट मेथड विसर्जन के सिद्धांतों पर आधारित है, जहां छात्र भाषा में डूबा रहता है और इसके निरंतर संपर्क के माध्यम से सीखने की उम्मीद की जाती है । इस शिक्षण विधि में लिखित अभ्यास के मुकाबले मौखिक अभ्यास पर ज्यादा जोर दिया जाता है ।

Teaching Methods – Conclusion

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कोई भी “सर्वश्रेष्ठ” शिक्षण पद्धति नहीं है जो हर स्थिति में प्रत्येक छात्र के लिए काम करेगी । अलग-अलग छात्रों के लिए अलग-अलग तरीके अधिक प्रभावी हो सकते हैं । अलग-अलग छात्रों के लिए उनकी सीखने की शैली, प्राथमिकताओं और जरूरतों के आधार पर अलग-अलग तरीके अधिक प्रभावी हो सकते हैं ।

सबसे Effective Teaching Methods वे हैं जो छात्रों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं और जो जुड़ाव, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देती हैं । विभिन्न तरीकों के साथ प्रयोग करके, सहकर्मियों के साथ सहयोग करके, और नए विचारों और दृष्टिकोणों के लिए खुले रहकर, शिक्षक गतिशील और प्रभावी शिक्षण वातावरण बना सकते हैं ।

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YOP Education

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Problem Solving Method

समस्या समाधान विधि – Problem Solving Method 

समस्या समाधान विधि ( problem solving method )

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method) इस विधि के जनक प्राचीन काल के अनुसार  सुकरात व सेंट थॉमस  तथा आधुनिक समय के अनुसार  जॉन डीवी  है। समस्या उस समय प्रकट होता है, जब लक्ष्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा आती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं है।समस्या-समाधान विधि मनोविज्ञान के कोहलर अंतर्दृष्टि सिद्धांत पर आधारित है।

समस्या समाधान का अर्थ ( Meaning of problem resolution )

विद्यार्थियों को शिक्षण काल में अनेक समस्याओं या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिनका समाधान उसे स्वयं करना पड़ता है। समस्या समाधान का अर्थ है लक्ष्य को प्राप्त करने आने समस्याओं का समाधान  इसको समस्या हल करने की विधि भी कहते हैं।

व्याख्यान प्रदर्शन विध

व्याख्यान विधि

समस्या समाधान विधि परिभाषा ( Problem Resolution Method Definition )

वुडवर्थ ( Woodworth)  “समस्या-समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसन हों तो समस्या आती ही नहीं।”

स्किनर (Skinner)  “समस्या-समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सर्जनात्मक चिंतन तथा तर्क दोनों होते हैं।”

यदि हम किसी निश्चित लक्ष्य पर पहुँचना चाहते हैं, पर किसी कठिनाई के कारण नहीं पहुँच पाते हैं, तब हमारे समक्ष एक समस्या उपस्थित हो जाती है। यदि हम इस कंठिनाई पर विजय प्राप्त करके अपने लक्ष्य पर पहुँच जाते हैं, तो हमें अपनी समस्या का समाधान कर लेते हैं। इस प्रकार,  समस्या समाधान  का अर्थ है- कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके लक्ष्य को प्राप्त करना।

स्किनर  के अनुसार- “समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती प्रतीत होती कठिनाइयों पर विजय पाने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं के बावजूद सामंजस्य करने की विधि है।”

“Problem-solving is a process of overcoming difficulties that appear to interfere with the attainment of a goal. It is a procedure of making adjustments in spite of interferences.”  -Skinner

समस्या समाधान के स्तर (Levels of Problem-Solving)

तर्क, समस्या के समाधान का आवश्यक अंग है। समस्या का समाधान, चिन्तन तथा तर्क का उद्देश्य है। स्टेर्नले ग्रे के अनुसार-  “समस्या समाधान वह प्रतिमान है, जिसमें तार्किक चिन्तन निहित होता है।”  समस्या समाधान के अनेक स्तर हैं। कुछ समस्यायें बहुत सरल होती हैं, जिनको हम बिना किसी कठिनाई के हल कर सकते हैं, जैसे—पानी पीने की इच्छा । हम इस इच्छा को निकट की प्याऊ पर जाकर तृप्त कर सकते हैं। इसके विपरीत, कुछ समस्यायें बहुत जटिल होती हैं, जिनको हल करने में हमें अत्यधिक कठिनाई होती है; उदाहरण के लिये रेगिस्तान में किसी विशेष स्थान पर जल-प्रणाली स्थापित करने की इच्छा है। इस समस्या का समाधान करने के लिये अनेक उपाय किये जाने आवश्यक हैं; जैसे-पानी कहाँ से प्राप्त किया जाये ? उसे उस विशेष स्थान कैसे पहुँचाया जाये ? उसके लिये धन किस प्रकार प्राप्त किया जाये ? इत्यादि। इन समस्याओं को हल करने के बाद ही पानी की मुख्य इच्छा पूरी की जा सकती है।

समस्या समाधान की विधियाँ (Methods of Problem-solving)

स्किनर (Skinner) ने समस्या समाधान’ की निम्नलिखित विधियाँ बताई हैं-

1. प्रयास एवं त्रुटि विधि (Trial & Error Method) –  इस विधि का प्रयोग निम्न और उच्च कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में थार्नडाइक (Thorndike) का बिल्ली पर किया जाने वाला प्रयोग उल्लेखनीय है। बिल्ली अनेक गलतियाँ करके अन्त में पिंजड़े से बाहर निकलना सीख गई।

2. वाक्यात्मक भाषा विधि (Sentence Language Method)-  इस विधि का प्रयोग मनुष्य के द्वारा बहुत लम्बे समय से किया जा रहा है। वह पूरे वाक्य बोलकर अपनी अनेक समस्याओं का समाधान करता है और फलस्वरूप प्रगति करता चला आ रहा है। इसलिये, वाक्यात्मक भाषा को सारी सभ्यता का आधार माना जाता है।

3. अनसीखी विधि (Unlearned Method) –  इस विधि का प्रयोग निम्न कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, मधुमक्खियों की भोजन की इच्छा, फूलों का रस चूसने से और खतरे से बचने की इच्छा, शत्रु को डंक मारने से पूरी हो जाती है।

4. वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) –  आज का प्रगतिशील मानव अपनी समस्या का समाधान करने के लिये वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करता है। हम इसका विस्तृत वर्णन कर रहे है।

5. अन्तर्दृष्टि विधि (Insight Method)-  इस विधि का प्रयोग उच्च कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में कोहलर (Kohler) का वनमानुषों पर किया जाने वाला प्रयोग उल्लेखनीय है।

समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि (Scientific Method of Problem-Solving)

स्किनर (Skinner) के अनुसार, समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि में निम्नलिखित छः सोपानों (Steps) का अनुकरण किया जाता है—

1. समस्या को समझना (Understanding the Problem) –  इस सोपान में व्यक्ति यह समझने का प्रयास करता है कि समस्या क्या है, उसके समाधान में क्या कठिनाइयाँ हैं या हो सकती हैं तथा उनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है ?

2. जानकारी का संग्रह (Collecting Information)-  इस सोपान में व्यक्ति समस्या से सम्बन्धित जानकारी का संग्रह करता है। हो सकता है कि उससे पहले कोई और व्यक्ति उस समस्या को हल कर चुका हो। अतः वह अपने समय की बचत करने के लिये उस व्यक्ति द्वारा संग्रह किये गये तथ्यों की जानकारी प्राप्त करता है।

3. सम्भावित समाधानों का निर्माण- (Formulating Possible Solutions) –  इस सोपान में व्यक्ति, संग्रह की गई जानकारी की सहायता से समस्या का समाधान करने के लिये कुछ विधियों को निर्धारित करता है। वह जितना अधिक बुद्धिमान होता है, उतनी ही अधिक उत्तम ये विधियाँ होती हैं। इस सोपान में सृजनात्मक चिन्तन (Creative Thinking) प्रायः सक्रिय रहता है।

4. सम्भावित समाधानों का मूल्यांकन (Evaluating the Possible Solutions) –  इस सोपान में व्यक्ति निर्धारित की जाने वाली विधियों का मूल्यांकन करता है। दूसरे शब्दों में, वह प्रत्येक विधि के प्रयोग के परिणामों पर विचार करता है। इस कार्य में उसकी सफलता आँशिक रूप से उसकी बुद्धि तथा आंशिक रूप से संग्रह की गई जानकारी के आधार पर निर्धारित की जाने वाली विधियों पर निर्भर रहती है।

5. सम्भावित समाधानों का परीक्षण (Testing Possible Solutions) –  इस सोपान में व्यक्ति उक्त विधियों का प्रयोगशाला में या उसके बाहर परीक्षण करता है।

6. निष्कर्षों का निर्णय-Forming Conclusions-  इस सोपान में व्यक्ति अपने परीक्षणों के आधार पर विधियों के सम्बन्ध में अपने निष्कर्षों का निर्माण करता है। परिणामस्वरूप, वह यह अनुमान लगा लेता है कि समस्या का समाधान करने के लिये उनमें से कौन-सी विधि सर्वोत्तम है।

7. समाधान का प्रयोग (Application of Solution)-  इस सोपान का उल्लेख क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) ने किया है। व्यक्ति अपने द्वारा निश्चित की गई सर्वोत्तम विधि को  समस्या  का समाधान करने के लिये प्रयोग करता है।

8. यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति, समस्या का समाधान करने में सफल हो। इस सम्बन्ध में  स्किनर  के अनुसार-  “इस विधि से भी भविष्यवाणियाँ बहुधा गलत होती हैं और गलतियाँ हो जाती हैं।”

“Even with this method, predictions are often inaccurate and errors are still made.”  -Skinner

समस्या समाधान विधि का महत्व (Importance of Problem-Solving Method)

मरसेल का कथन है— “समस्या समाधान की विधि का शिक्षा में सर्वाधिक महत्व है।”

“The process of problem-solving is of the utmost importance in education.”  – Mursell

छात्रों की शिक्षा में समस्या समाधान की विधि का महत्व इसके अनेक लाभों के कारण है। कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं—(1) यह उनमें स्वयं कार्य करने का आत्मविश्वास उत्पन्न करती है। (2) यह उनके विचारात्मक और सृजनात्मक चिन्तन एवं तार्किक शक्ति का विकास करती है। (3) यह उनकी रुचि को जाग्रत करती है। (4) यह उनको अपने भावी जीवन की समस्याओं का समाधान करने का प्रशिक्षण देती है। (5) यह उनको समस्याओं का समाधान करने के लिये वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग का अनुभव प्रदान करती है। इन लाभों के कारण  क्रो  एवं  क्रो  का सुझाव है—“शिक्षकों को समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। केवल तभी वे शुद्ध स्पष्ट और निष्पक्ष चिन्तन का विकास करने के लिये छात्रों का प्रदर्शन कर सकेंगे।”

समस्या समाधान विधि के महत्व (Importance of problem solving method )

समस्या समाधान विधि मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक विधि है। समस्या विद्यार्थी के पाठ्यवस्तु से संबंधित होती है। इसमें छात्र को करके, सीखने के अवसर उपलब्ध होते हैं। 

इस विधि में विद्यार्थी के सामने एक समस्या रखी जाती है और विद्यार्थी उसका हल ढूंढने के लिए प्रयास करता है। अध्यापक हल ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।

अन्वेषण विधि

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps of Problem Solving Method)

Problem solving method in teaching, इस विधि की अनुपालन करते समय सर्वप्रथम समस्या की पहचान की जाती है। समस्या को हल करने के लिए समस्या समाधान विधि के चरण को पालन करते हुए हम अपनी समस्या का निराकरण कर अपनी लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।

  • समस्या की पहचान

a.   समस्या का स्पष्ट विवरण अथवा समस्या कथन

b.   समस्या का स्पष्टीकरण विद्यार्थियों द्वारा आपस में चर्चा

c.   समस्या का परिसीमन समस्या का क्षेत्र निर्धारित करना

  • परिकल्पना का निर्माण – जांच एवं परीक्षण के लिए परिकल्पना का निर्माण।
  • प्रयोग द्वारा परीक्षण – परिकल्पनाओं का परीक्षण करना
  • समस्या के निष्कर्ष पर पहुंचना

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of the Problem Solving Method)

  • विधि से विधार्थी सहयोग करके सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • दाती समस्या को हल करने की प्रक्रिया में शामिल होकर उसे हल करना सीखते हैं।
  • विद्यार्थी परिकल्पना निर्माण करना सीखते हैं और इस प्रक्रिया से उसकी कल्पनाशीलता में वृद्धि होती है।
  • विद्यार्थी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
  • यह विधि विद्यार्थी में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास में सहायक हैं।

समस्या समाधान विधि के दोष Problem resolution method faults

  • इस विधि के प्रयोग में समय ज्यादा लगता है।
  • पाठ्य-पुस्तक का अभाव होता है।
  • इस विधि में त्रुटियाँ प्रभावहीन के कारण होती है।
  • गति धीमी रहती हैं।
  • इस विधि से हर विषय वस्तु का शिक्षण नहीं किया जा सकता है।
  • समस्या उचित रूप से चुनी हुई न हो तो वह असफल रहती हैं।
  • चूंकि इस विधि में प्रायोगिक कार्य भी करना होता है। अतः शिक्षक का प्रायोगिक कार्य में दक्ष होना आवश्यक होता है।

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शिक्षण की विधियाँ – Methods of Teaching in Hindi

अनुक्रम (Contents)

शिक्षण की विधियाँ ( Methods of Teaching )

“शिक्षण विधि से तात्पर्य शिक्षक द्वारा निर्देशित ऐसी क्रियाओं से है जिनके परिणामस्वरूप छात्र कुछ सीखते हैं।’ इस प्रकार शिक्षण विधि अनेक क्रियाओं का एक पुंज है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप छात्र कुछ ज्ञानार्जन करता है। शिक्षण विधि के प्रक्रिया होने के कारण इसमें कई सोपान (Steps) होते हैं, जिन्हें सुव्यवस्थित करना शिक्षण का कार्य है।

शिक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –

1. पाठ्य-पुस्तक विधि (Text-Book Method)

2. व्याख्यान विधि अथवा भाषण विधि (Lecture Method)

3. समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

4. कहानी पद्धति (Story Telling Method)

5. आगमन-निगमन विधि (Inductive-Deductive Method)

6. वाद-विवाद पद्धति (Discussion Method)

7. योजना विधि (Project Method)

8. प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)

9. निरीक्षित अध्ययन विधि (Supervised Study Method)

10. समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि (Socialized Recitation Method)

11. स्रोत विधि (Source Method)

12. इकाई विधि (Unit Method) ।

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  • मुस्लिम शिक्षा के प्रमुख गुण और दोष
  • मुस्लिम काल की शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य
  • मुस्लिम काल की शिक्षा की प्रमुख विशेषतायें
  • प्राचीन शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष
  • बौद्ध शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष
  • वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ
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Discussion Method of Teaching in Hindi

आज हम Discussion Method of Teaching in Hindi, शिक्षण की चर्चा पद्धति, परिचर्चा विधि, विचार – विमर्श विधि, Teaching of Social Science,चर्चा विधि आदि के बारे में जानेंगे। इन नोट्स के माध्यम से आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और आप अपनी आगामी परीक्षा को पास कर सकते है | Notes के अंत में PDF Download का बटन है | तो चलिए जानते है इसके बारे में विस्तार से |

  • शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है, जो शिक्षार्थियों और समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार विकसित हो रही है। एक शिक्षण पद्धति जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है और प्रभावी शिक्षाशास्त्र की आधारशिला बनी हुई है, वह है चर्चा पद्धति।
  • यह दृष्टिकोण छात्रों को उनकी सीखने की यात्रा के केंद्र में रखता है, उन्हें पाठ्यक्रम सामग्री के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने, विचारों का आदान-प्रदान करने और महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • इन नोट्स में, हम चर्चा पद्धति, इसके लाभ और आधुनिक शिक्षा में इसकी प्रासंगिकता का पता लगाएंगे।

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चर्चा पद्धति क्या है?

(what is the discussion method).

चर्चा पद्धति एक शैक्षिक और संचार दृष्टिकोण है जिसका उपयोग कक्षाओं, व्यावसायिक बैठकों और अनौपचारिक समूह समारोहों सहित विभिन्न सेटिंग्स में किया जाता है। यह प्रतिभागियों के बीच विचारों, राय और सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक संरचित और इंटरैक्टिव तरीका है। चर्चा पद्धति का प्राथमिक लक्ष्य आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना, सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना और किसी विषय की गहरी समझ को सुविधाजनक बनाना है।

यहां चर्चा पद्धति की कुछ प्रमुख विशेषताएं और सिद्धांत दिए गए हैं:

  • प्रतिभागियों की सहभागिता (Participant Engagement): किसी चर्चा में, प्रतिभागी सक्रिय रूप से एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं। वे अपने विचार साझा करते हैं, प्रश्न पूछते हैं और दूसरों के योगदान पर प्रतिक्रिया देते हैं। उदाहरण: जलवायु परिवर्तन के कारणों और परिणामों पर अपने विचार साझा करने के लिए छात्र सक्रिय रूप से हाथ उठाते हैं या बारी-बारी से बोलते हैं।
  • खुला आदान-प्रदान (Open Exchange): चर्चाएँ आम तौर पर खुली और मुक्त-प्रवाह वाली होती हैं, जिससे प्रतिभागियों को निर्णय या प्रतिशोध के डर के बिना अपने दृष्टिकोण व्यक्त करने की अनुमति मिलती है। यह विविध प्रकार के विचारों और दृष्टिकोणों को बढ़ावा देता है। उदाहरण: छात्रों को अपनी राय स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, चाहे वे चर्चा के मुख्य बिंदुओं से सहमत हों या असहमत।
  • सुविधाप्रदाता की भूमिका (Facilitator Role): एक फैसिलिटेटर, अक्सर एक शिक्षक या चर्चा नेता, बातचीत का मार्गदर्शन करता है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी को बोलने का अवसर मिले, और चर्चा को ट्रैक पर रखने में मदद करता है। उदाहरण: शिक्षक चर्चा नेता के रूप में कार्य करता है, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक छात्र को बोलने का मौका मिले और गहन प्रश्न पूछकर बातचीत का मार्गदर्शन करता है।
  • आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking): प्रतिभागियों को विषय के बारे में गंभीर रूप से सोचने, जानकारी का विश्लेषण करने और तर्कों का मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। चर्चा में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से आलोचनात्मक सोच कौशल को निखारा जाता है। उदाहरण: छात्र पारिस्थितिक तंत्र और मानव समाज पर जलवायु परिवर्तन के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों पर चर्चा करने के लिए वैज्ञानिक डेटा और शोध निष्कर्षों का विश्लेषण करते हैं।
  • सक्रिय श्रवण (Active Listening): प्रभावी चर्चाओं के लिए सक्रिय श्रवण की आवश्यकता होती है, जहां प्रतिभागी न केवल बोलते हैं बल्कि दूसरे क्या कह रहे हैं उस पर भी ध्यान देते हैं। इससे दूसरों के विचारों को आगे बढ़ाने और सोच-समझकर प्रतिक्रिया देने में मदद मिलती है। उदाहरण: जब कोई सहपाठी प्रतिवाद प्रस्तुत करता है, तो छात्र प्रतिक्रिया देने से पहले उसके पीछे के तर्क को समझने के लिए ध्यान से सुनते हैं।
  • सम्मानजनक संचार (Respectful Communication): चर्चा में विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों का सम्मान महत्वपूर्ण है। प्रतिभागियों को खुद को सम्मानपूर्वक व्यक्त करना चाहिए और व्यक्तिगत हमलों से बचना चाहिए। उदाहरण: छात्र अपनी असहमति को शिष्टाचार के साथ व्यक्त करते हुए कहते हैं, “मैं आपकी बात समझता हूं, लेकिन मैं सम्मानपूर्वक असहमत हूं क्योंकि…”
  • समस्या समाधान (Problem Solving): चर्चाओं का उपयोग समस्याओं को हल करने, निर्णय लेने या जटिल मुद्दों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। प्रतिभागी समाधान खोजने या आम सहमति तक पहुंचने के लिए मिलकर काम करते हैं। उदाहरण: कक्षा जलवायु परिवर्तन को कम करने के संभावित समाधानों पर चर्चा करती है, जैसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • सीखना और ज्ञान साझा करना (Learning and Knowledge Sharing): चर्चा पद्धति सीखने और ज्ञान साझा करने का एक शक्तिशाली उपकरण है। बातचीत में योगदान देने के लिए प्रतिभागी अपने स्वयं के अनुभवों और विशेषज्ञता से लाभ उठा सकते हैं। उदाहरण: पर्यावरण विज्ञान में विशेषज्ञता वाला एक छात्र जलवायु मॉडल के बारे में अपना ज्ञान साझा करता है, जिससे दूसरों को जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणियों के पीछे के विज्ञान को समझने में मदद मिलती है।
  • विविध परिप्रेक्ष्य (Diverse Perspectives): चर्चाओं से अक्सर अलग-अलग पृष्ठभूमि, अनुभव और दृष्टिकोण वाले प्रतिभागियों के विविध समूह को लाभ होता है। यह विविधता अधिक व्यापक अंतर्दृष्टि को जन्म दे सकती है। उदाहरण: चर्चा में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के छात्र शामिल होते हैं, जिससे विभिन्न समाज जलवायु परिवर्तन को कैसे समझते हैं और कैसे संबोधित करते हैं, इस बारे में विचारों का समृद्ध आदान-प्रदान होता है।
  • चिंतन और संश्लेषण (Reflection and Synthesis): चर्चाओं में प्रतिबिंब और संश्लेषण के क्षण शामिल हो सकते हैं, जहां प्रतिभागी मुख्य बिंदुओं को सारांशित करते हैं, निष्कर्ष निकालते हैं, या बातचीत से महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हैं। उदाहरण: चर्चा के अंत में, शिक्षक जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुख्य निष्कर्षों का सारांश प्रस्तुत करता है।

इस उदाहरण में, चर्चा पद्धति का उपयोग कक्षा सेटिंग में जलवायु परिवर्तन के जटिल मुद्दे का पता लगाने के लिए किया जाता है। प्रत्येक प्रमुख विशेषता और सिद्धांत को प्रतिभागियों के व्यवहार और बातचीत के माध्यम से चित्रित किया गया है |

चर्चा पद्धति का उपयोग आमतौर पर शिक्षा में छात्रों के बीच सक्रिय शिक्षण और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। यह विचार-मंथन, निर्णय लेने और समस्या-समाधान के लिए पेशेवर सेटिंग में भी एक मूल्यवान उपकरण है। दोनों संदर्भों में, प्रभावी चर्चा से जटिल विषयों की गहरी समझ और बेहतर निर्णय परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

Discussion-Method-of-Teaching-in-Hindi

चर्चा विधि: एक इंटरैक्टिव शिक्षण दृष्टिकोण में गहराई से उतरना

(the discussion method: a deeper dive into an interactive learning approach).

चर्चा पद्धति एक शक्तिशाली शैक्षिक उपकरण है जो कक्षा को एक सक्रिय और लोकतांत्रिक शिक्षण वातावरण में बदल देती है। इसमें संरचित वार्तालाप शामिल हैं जहां छात्र और शिक्षक सहयोगात्मक रूप से विषयों का पता लगाते हैं, गहरी समझ और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देते हैं। आइए इसके शैक्षिक महत्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए इस पद्धति के प्रमुख घटकों, लाभों और वास्तविक दुनिया के उदाहरणों पर गौर करें।

चर्चा पद्धति के प्रमुख घटक (Key Components of the Discussion Method):

शिक्षक सुविधाप्रदाता के रूप में (Teacher as Facilitator):

  • स्पष्टीकरण: शिक्षक चर्चा का मार्गदर्शन और संचालन करने में केंद्रीय भूमिका निभाता है। वे प्रश्न बनाते हैं, फोकस बनाए रखते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि बातचीत सार्थक बनी रहे।
  • उदाहरण: भौतिकी कक्षा में, शिक्षक विद्युत चुंबकत्व के सिद्धांतों पर चर्चा की सुविधा प्रदान कर सकता है, जिससे छात्रों को प्रमुख समीकरणों की अपनी व्याख्याएं साझा करने के लिए कहा जा सकता है।

छात्र समूह भागीदारी (Student Group Participation):

  • स्पष्टीकरण: छात्रों की सक्रिय भागीदारी मौलिक है। वे अपने दृष्टिकोण, अनुभव और प्रश्न साझा करके, विचारों के विविध आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर योगदान करते हैं।
  • उदाहरण: एक साहित्य पाठ्यक्रम में, छात्र किसी उपन्यास के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ के बारे में चर्चा में शामिल हो सकते हैं, प्रत्येक अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

किसी समस्या या विषय का चयन (Selection of a Problem or Topic):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा शिक्षक द्वारा चुने गए एक विशिष्ट समस्या, प्रश्न या विषय के इर्द-गिर्द घूमती है। यह विषय बातचीत के लिए केंद्र बिंदु प्रदान करता है।
  • उदाहरण: पर्यावरण विज्ञान कक्षा में, छात्र वनों की कटाई से संबंधित चुनौतियों और संभावित समाधानों पर चर्चा कर सकते हैं।

समस्या का समाधान या विषय अन्वेषण (Solving the Problem or Topic Exploration):

  • स्पष्टीकरण: प्रतिभागी समस्या या विषय का गहनता से पता लगाने, जानकारी का विश्लेषण करने और समाधान या नए दृष्टिकोण प्रस्तावित करने के लिए मिलकर काम करते हैं।
  • उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, छात्र किसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना के कारणों और परिणामों पर चर्चा कर सकते हैं, विभिन्न ऐतिहासिक वृत्तांतों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कर सकते हैं।

चर्चा विधि के लाभ

(benefits of the discussion method).

बढ़ी हुई समझ (Enhanced Understanding):

  • स्पष्टीकरण: सक्रिय जुड़ाव और संवाद से विषय वस्तु की गहरी समझ पैदा होती है।

आलोचनात्मक सोच विकास (Critical Thinking Development):

  • स्पष्टीकरण: यह विधि महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करती है क्योंकि छात्र जानकारी और दृष्टिकोण का आकलन, विश्लेषण और संश्लेषण करते हैं।

प्रभावी संचार कौशल (Effective Communication Skills):

  • स्पष्टीकरण: छात्र विचारों को व्यक्त करके, सक्रिय रूप से दूसरों को सुनकर और सम्मानजनक बहस में शामिल होकर अपनी संचार क्षमताओं को निखारते हैं।

सक्रिय अध्ययन (Active Learning):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा पद्धति कक्षा को एक सक्रिय शिक्षण वातावरण में बदल देती है, जहाँ छात्र सक्रिय रूप से सीखने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

सीखने में लोकतंत्र (Democracy in Learning):

  • स्पष्टीकरण: यह एक लोकतांत्रिक कक्षा वातावरण को प्रोत्साहित करता है जहां छात्रों को अपनी राय व्यक्त करने और सामूहिक शिक्षा में योगदान करने का अवसर मिलता है।

वास्तविक दुनिया का अनुप्रयोग (Real-World Application):

  • उदाहरण: एक व्यावसायिक नैतिकता सेमिनार में, छात्र निगमों द्वारा सामना की जाने वाली नैतिक दुविधाओं के बारे में चर्चा में भाग लेते हैं। वे कंपनियों द्वारा लिए गए निर्णयों के नैतिक निहितार्थों पर विचार करते हुए वास्तविक दुनिया के मामले के अध्ययन का विश्लेषण करते हैं। संवाद और बहस के माध्यम से, वे विभिन्न नैतिक ढांचे का पता लगाते हैं और जिम्मेदार व्यावसायिक प्रथाओं के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव करते हैं। यह न केवल व्यावसायिक नैतिकता के बारे में उनकी समझ को गहरा करता है बल्कि उन्हें भविष्य के करियर के लिए नैतिक निर्णय लेने के कौशल से भी लैस करता है।

निष्कर्ष: चर्चा पद्धति शिक्षकों को गतिशील और आकर्षक शिक्षण अनुभव बनाने के लिए सशक्त बनाती है जो महत्वपूर्ण सोच, सक्रिय भागीदारी और लोकतांत्रिक संवाद को बढ़ावा देती है। यह शिक्षा के प्रति समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, छात्रों को विषय-विशिष्ट ज्ञान और आवश्यक जीवन कौशल दोनों से समृद्ध करता है। सहयोगात्मक और सम्मानजनक माहौल को बढ़ावा देकर, यह विधि छात्रों को अकादमिक रूप से उत्कृष्टता प्राप्त करने और सूचित, सहानुभूतिपूर्ण नागरिक बनने के लिए तैयार करती है।

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Steps of Discussion method:

(परिचर्चा विधि के चरण / सोपान).

चर्चा पद्धति एक गतिशील शैक्षिक दृष्टिकोण है जो सक्रिय शिक्षण और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देती है। इसमें प्रतिभागियों के बीच सार्थक संवाद को सुविधाजनक बनाने के लिए अच्छी तरह से संरचित कदमों की एक श्रृंखला शामिल है। नीचे, हम आपकी समझ को बढ़ाने के लिए उदाहरणों और अंतर्दृष्टि के साथ इनमें से प्रत्येक चरण का विस्तार से पता लगाएंगे।

चरण 1: समस्या की प्रस्तुति (Presentation of the Problem):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा पद्धति के पहले चरण में चर्चा के लिए एक स्पष्ट समस्या या विषय प्रस्तुत करना शामिल है। यह समस्या संपूर्ण चर्चा के लिए आधार का काम करती है।
  • उदाहरण: समाजशास्त्र कक्षा में, शिक्षक समाज में आय असमानता की समस्या प्रस्तुत कर सकता है, इसके कारणों और संभावित समाधानों पर चर्चा के लिए मंच तैयार कर सकता है।

चरण 2: स्रोतों की पहचान (Identification of Sources):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा शुरू होने से पहले, प्रतिभागियों को उन स्रोतों और प्रासंगिक सामग्रियों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए जो समस्या और संभावित समाधानों को समझने में सहायता करेंगे। यह कदम सुनिश्चित करता है कि सभी को आवश्यक जानकारी तक पहुंच प्राप्त हो।
  • उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, छात्रों को गहन चर्चा की तैयारी के लिए किसी ऐतिहासिक घटना से संबंधित लेख, किताबें और प्राथमिक स्रोत प्रदान किए जा सकते हैं।

चरण 3: छात्र तैयारी (Student Preparation):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा की प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिए, छात्रों को उपलब्ध स्रोतों की समीक्षा करके और समस्या या विषय पर अपने विचार और राय एकत्र करके तैयारी करनी चाहिए।
  • उदाहरण: पर्यावरण विज्ञान पाठ्यक्रम में, छात्रों को चर्चा से पहले शोध पत्र पढ़ने और किसी विशिष्ट उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव पर नोट्स तैयार करने के लिए कहा जा सकता है।

चरण 4: चर्चा आयोजित करना (Conducting Discussion):

  • स्पष्टीकरण: यह चर्चा पद्धति का हृदय है, जहां प्रतिभागी सक्रिय रूप से संवाद में संलग्न होते हैं, अपनी अंतर्दृष्टि साझा करते हैं और समस्या या विषय से संबंधित विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।
  • उदाहरण: राजनीति विज्ञान की कक्षा में, छात्र किसी मौजूदा राजनीतिक मुद्दे के बारे में चर्चा में शामिल हो सकते हैं, विभिन्न दृष्टिकोणों की खोज कर सकते हैं और नीतिगत समाधानों पर बहस कर सकते हैं।

चरण 5: अनुवर्ती कार्यक्रम (Follow-up Program):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा के बाद, सीखने को समेकित करने, किसी भी शेष प्रश्न या चिंताओं का समाधान करने और चर्चा को समाप्त करने के लिए एक अनुवर्ती योजना बनाना आवश्यक है।
  • उदाहरण: एक व्यावसायिक नैतिकता सेमिनार में, अनुवर्ती कार्यक्रम में एक चिंतनशील असाइनमेंट शामिल हो सकता है जहां छात्र चर्चा के परिणामों का विश्लेषण करते हैं और एक काल्पनिक व्यावसायिक परिदृश्य के लिए नैतिक दिशानिर्देश प्रस्तावित करते हैं।

इन चरणों का पालन करने के लाभ (Benefits of Following These Steps):

  • संरचित शिक्षण (Structured Learning): चरण-दर-चरण दृष्टिकोण चर्चा को संरचना प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिभागी अच्छी तरह से तैयार हैं और लगे हुए हैं।
  • आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking): किसी समस्या को विभिन्न कोणों से संबोधित करके, प्रतिभागी महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करते हैं, कई दृष्टिकोणों से मुद्दों की जांच करते हैं।
  • प्रभावी संचार (Effective Communication): चर्चा में शामिल होने से संचार कौशल में सुधार होता है, क्योंकि प्रतिभागी अपने विचारों को स्पष्ट करते हैं और सक्रिय रूप से दूसरों को सुनते हैं।
  • गहरी समझ (Deeper Understanding): चर्चा के लिए तैयारी करने और उसमें भाग लेने से समस्या या विषय की अधिक गहरी समझ पैदा होती है।
  • सक्रिय शिक्षण (Active Learning): चर्चा पद्धति निष्क्रिय शिक्षार्थियों को सक्रिय प्रतिभागियों में बदल देती है, जिससे सीखने का अनुभव बढ़ जाता है।

निष्कर्ष: चर्चा पद्धति के चरण इंटरैक्टिव और आकर्षक सीखने के अनुभवों को सुविधाजनक बनाने के लिए एक व्यवस्थित और प्रभावी तरीका प्रदान करते हैं। इस संरचित दृष्टिकोण का पालन करके, शिक्षक ऐसा वातावरण बना सकते हैं जहां छात्र सहयोगात्मक रूप से समस्याओं का पता लगाते हैं, अंतर्दृष्टि साझा करते हैं और मूल्यवान कौशल विकसित करते हैं जो कक्षा से परे तक विस्तारित होते हैं। ये कदम प्रतिभागियों को आलोचनात्मक विचारक, प्रभावी संचारक और आजीवन सीखने वाले बनने के लिए सशक्त बनाते हैं।

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सामाजिक विज्ञान में चर्चा विषयों की खोज

(exploring discussion topics in social science).

सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में, जटिल विषयों की गहरी समझ को सुविधाजनक बनाने में चर्चाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करते हैं, जागरूकता को बढ़ावा देते हैं और सूचित नागरिकता को बढ़ावा देते हैं। आइए, आपकी समझ को बढ़ाने के लिए उदाहरण और अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए, सामाजिक विज्ञान में चर्चा से संबंधित प्रत्येक क्षेत्र पर गहराई से विचार करें।

1. भारत का राष्ट्रीय आंदोलन (National Movement of India):

  • स्पष्टीकरण: इस विषय में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष पर चर्चा शामिल है। छात्र प्रमुख घटनाओं, नेताओं, विचारधाराओं और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव का पता लगाते हैं।
  • उदाहरण: इतिहास की एक कक्षा में, छात्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक रणनीति के रूप में अहिंसा की भूमिका के बारे में चर्चा में भाग लेते हैं, और इसकी तुलना विश्व स्तर पर अन्य आंदोलनों से करते हैं।

2. भारतीय संविधान (Indian Constitution):

  • स्पष्टीकरण: भारतीय संविधान पर चर्चा में इसके प्रारूपण, सिद्धांतों, मौलिक अधिकारों और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे संस्थानों की कार्यप्रणाली शामिल है।
  • उदाहरण: नागरिक शास्त्र के पाठ में, छात्र व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की सुरक्षा में मौलिक अधिकारों के महत्व पर चर्चा कर सकते हैं।

3. सामाजिक सुरक्षा (Social Security):

  • स्पष्टीकरण: सामाजिक सुरक्षा चर्चा विभिन्न जीवन चरणों के दौरान व्यक्तियों और परिवारों को आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से नीतियों, कार्यक्रमों और उपायों पर केंद्रित है।
  • उदाहरण: अर्थशास्त्र की कक्षा में, छात्र गरीबी और असमानता को दूर करने में सरकारी कल्याण कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का पता लगाते हैं।

4. लोकतांत्रिक व्यवस्था (Democratic System):

  • स्पष्टीकरण: यह क्षेत्र लोकतंत्र के सिद्धांतों, चुनावी प्रणालियों, नागरिकों की भूमिका और लोकतांत्रिक संस्थानों की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालता है।
  • उदाहरण: राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम में, छात्र लोकतांत्रिक समाज में नागरिक भागीदारी और सूचित मतदान के महत्व पर चर्चा करते हैं।

5. भारत की सामाजिक समस्याएँ (Social Problems of India):

  • स्पष्टीकरण: सामाजिक समस्याओं पर चर्चा में भारतीय संदर्भ में गरीबी, लैंगिक असमानता, जाति-आधारित भेदभाव और पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे मुद्दों का विश्लेषण शामिल है।
  • उदाहरण: समाजशास्त्र की कक्षा में, छात्र भारत में लिंग आधारित हिंसा के मूल कारणों और संभावित समाधानों पर चर्चा कर सकते हैं।

6. भारत के उद्योग (Industries of India):

  • स्पष्टीकरण: भारतीय उद्योगों पर चर्चा कृषि, विनिर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्रों का पता लगाती है, अर्थव्यवस्था, रोजगार और वैश्विक व्यापार में उनके योगदान की जांच करती है।
  • उदाहरण: अर्थशास्त्र के एक पाठ में, छात्र भारतीय आईटी उद्योग पर वैश्वीकरण के प्रभाव और नौकरी के अवसरों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करते हैं।

7. जनसंख्या समस्या (Population Problem):

  • स्पष्टीकरण: इस विषय में जनसंख्या वृद्धि, वितरण, जनसांख्यिकीय परिवर्तन और संबंधित चुनौतियों, जैसे अधिक जनसंख्या या कम जनसंख्या, के बारे में चर्चा शामिल है।
  • उदाहरण: भूगोल की कक्षा में, छात्र संसाधन उपलब्धता और शहरीकरण पर भारत की जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों पर चर्चा करते हैं।

8. भारत में विविधता (Diversity in India):

  • स्पष्टीकरण: विविधता पर चर्चा में भारत के बहुसांस्कृतिक समाज, धार्मिक बहुलवाद, भाषाई विविधता और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का महत्व शामिल है।
  • उदाहरण: सांस्कृतिक अध्ययन कक्षा में, छात्र भारत के विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में इसके महत्व का पता लगाते हैं।

सामाजिक विज्ञान विषयों पर चर्चा करने के लाभ (Benefits of Discussing Social Science Topics):

  • आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking): चर्चाएँ छात्रों को जटिल सामाजिक मुद्दों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने, विश्लेषणात्मक कौशल को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
  • जागरूकता (Awareness): चर्चाओं के माध्यम से, छात्रों को विषयों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ की गहरी समझ प्राप्त होती है।
  • सूचित नागरिकता (Informed Citizenship): चर्चाएँ छात्रों को सूचित और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए सशक्त बनाती हैं जो सामाजिक मुद्दों में सक्रिय रूप से शामिल हो सकते हैं।
  • सहानुभूति (Empathy): सामाजिक विज्ञान विषयों की खोज छात्रों को विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों को समझने में मदद करके सहानुभूति को बढ़ावा देती है।
  • समस्या समाधान (Problem Solving): चर्चाओं से अक्सर सामाजिक समस्याओं के समाधान पर विचार-मंथन होता है, समस्या-समाधान कौशल को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष: सर्वांगीण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक विज्ञान क्षेत्रों में चर्चा आवश्यक है। वे छात्रों को जटिल सामाजिक चुनौतियों से निपटने और बेहतर भविष्य को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए आवश्यक ज्ञान, महत्वपूर्ण सोच क्षमताओं और सहानुभूति से लैस करते हैं। ये चर्चाएँ न केवल अकादमिक शिक्षा को बढ़ाती हैं बल्कि सूचित और जिम्मेदार नागरिकता को भी बढ़ावा देती हैं।

प्रभावी चर्चाओं के लिए दिशानिर्देश: सीखने और भागीदारी को बढ़ाना

(guidelines for effective discussions: enhancing learning and participation).

शैक्षिक सेटिंग्स में सक्रिय शिक्षण, आलोचनात्मक सोच और रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देने के लिए चर्चाएँ मूल्यवान उपकरण हैं। हालाँकि, ऐसे महत्वपूर्ण विचार और दिशानिर्देश हैं जिन्हें शिक्षकों और छात्रों दोनों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चर्चाएँ उत्पादक और लाभकारी हों। आइए इन प्रमुख बिंदुओं को विस्तार से देखें और समझें कि सार्थक चर्चा कैसे की जाए।

1. चर्चा बनाम भाषण या बहस (Discussion vs. Speech or Debate):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाओं को भाषणों या बहसों से अलग करना आवश्यक है। चर्चाओं में खुला और सहयोगात्मक संवाद शामिल होता है, जहां प्रतिभागी एकालाप देने या तर्क जीतने की कोशिश करने के बजाय अपने दृष्टिकोण साझा करते हैं और बातचीत में संलग्न होते हैं।
  • उदाहरण: एक साहित्य कक्षा में, किसी पुस्तक के बारे में पूर्वाभ्यास भाषण देने के बजाय, छात्र पुस्तक के विषयों, पात्रों और प्रतीकवाद के बारे में चर्चा में संलग्न होते हैं, जिससे विविध दृष्टिकोणों की अनुमति मिलती है।

2. शिक्षक पूर्वाग्रह से बचना (Avoiding Teacher Bias):

  • स्पष्टीकरण: शिक्षकों को चर्चा के दौरान तटस्थ रुख बनाए रखना चाहिए और छात्रों पर अपनी राय या विश्वास थोपने से बचना चाहिए। लक्ष्य स्वतंत्र सोच और विविध दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करना है।
  • उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, शिक्षक ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में व्यक्तिगत राय व्यक्त करने से बचते हैं और छात्रों को साक्ष्य के आधार पर अपनी व्याख्या बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

3. विषयों की उपयुक्तता (Appropriateness of Topics):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा के विषयों का चुनाव छात्रों के संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास के स्तर के अनुरूप होना चाहिए। विषय आयु-उपयुक्त और पाठ्यक्रम के लिए प्रासंगिक होने चाहिए।
  • उदाहरण: प्राथमिक विद्यालय की विज्ञान कक्षा में, छात्र खाद्य श्रृंखला जैसी सरल पारिस्थितिक अवधारणाओं पर चर्चा कर सकते हैं, जबकि हाई स्कूल के छात्र अधिक जटिल पारिस्थितिक मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।

4. स्पष्ट एवं सुनियोजित अभिव्यक्ति (Clear and Well-Planned Expression):

  • स्पष्टीकरण: छात्रों को अपने विचारों को तर्कसंगत, व्यवस्थित और स्पष्ट तरीके से प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। स्पष्टता और तार्किक प्रस्तुति चर्चा की गुणवत्ता को बढ़ाती है।
  • उदाहरण: एक दर्शन कक्षा में, छात्र अपने दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए संरचित तर्कों और साक्ष्यों का उपयोग करके नैतिक दुविधाओं पर चर्चा करते हैं।

5. व्यर्थ की चर्चाओं और विवादों से बचना (Avoiding Pointless Discussions and Controversies):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाएँ उद्देश्यपूर्ण और प्रासंगिक विषयों पर केंद्रित होनी चाहिए। अप्रासंगिक या विवादास्पद क्षेत्रों में जाने से बचें जो सीखने के उद्देश्यों में योगदान नहीं देते हैं।
  • उदाहरण: जलवायु परिवर्तन के बारे में बहस में, प्रतिभागी व्यक्तिगत हमलों या असंबद्ध चर्चाओं से बचते हैं और वैज्ञानिक साक्ष्य और समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

6. सक्रिय श्रवण और धैर्य (Active Listening and Patience):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाओं में सक्रिय रूप से सुनना एक महत्वपूर्ण कौशल है। प्रतिभागियों को अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले धैर्यपूर्वक एक-दूसरे की बात सुननी चाहिए। यह सम्मानजनक और रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देता है।
  • उदाहरण: किसी ऐतिहासिक घटना पर कक्षा में चर्चा के दौरान, छात्र अपना विश्लेषण प्रस्तुत करने से पहले सक्रिय रूप से अपने साथियों की व्याख्याओं को सुनते हैं।

चर्चा दिशानिर्देशों का पालन करने के लाभ (Benefits of Adhering to Discussion Guidelines):

  • आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking): इन दिशानिर्देशों का पालन करने से महत्वपूर्ण सोच कौशल को बढ़ावा मिलता है क्योंकि प्रतिभागी जानकारी और विचारों का विश्लेषण, मूल्यांकन और संश्लेषण करते हैं।
  • सम्मानजनक संवाद (Respectful Dialogue): धैर्य को प्रोत्साहित करना, सक्रिय रूप से सुनना और सम्मानजनक आदान-प्रदान एक सकारात्मक और समावेशी सीखने के माहौल को बढ़ावा देता है।
  • स्वतंत्र सोच (Independent Thinking): शिक्षक पूर्वाग्रह से बचकर, छात्रों को स्वतंत्र रूप से सोचने और अपनी राय बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • प्रभावी संचार (Effective Communication): स्पष्ट अभिव्यक्ति और सुव्यवस्थित तर्क संचार कौशल को बढ़ाते हैं।
  • केंद्रित शिक्षण (Focused Learning): चर्चा में विषय पर और उद्देश्यपूर्ण बने रहने से यह सुनिश्चित होता है कि मूल्यवान कक्षा समय का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।

निष्कर्ष: संलग्न शिक्षण को बढ़ावा देने और छात्रों को गंभीर रूप से सोचने और प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रभावी चर्चाएँ आवश्यक हैं। इन दिशानिर्देशों का पालन करके, शिक्षक और छात्र दोनों एक सहयोगात्मक और समृद्ध शैक्षिक अनुभव बना सकते हैं जो स्वतंत्र सोच और सम्मानजनक संवाद को बढ़ावा देता है। ये चर्चाएँ न केवल अकादमिक शिक्षा को बढ़ाती हैं बल्कि छात्रों को रचनात्मक संचार और निर्णय लेने के लिए आजीवन कौशल भी प्रदान करती हैं।

चर्चा पद्धति के लाभ: छात्र-केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा देना

(advantages of the discussion method: fostering student-centered learning).

चर्चा पद्धति एक शैक्षणिक दृष्टिकोण है जो शैक्षिक प्रक्रिया में व्यापक लाभ प्रदान करती है। यह छात्रों को सक्रिय रूप से अपनी पढ़ाई में संलग्न होने के लिए सशक्त बनाता है, आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देता है और विचारों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है। नीचे, हम आपकी समझ को बढ़ाने के लिए उदाहरण और अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए, अधिक विस्तार से चर्चा पद्धति का उपयोग करने के प्रमुख लाभों का पता लगाएंगे।

1. बाल-केन्द्रित शिक्षा (Child-Centered Learning):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा पद्धति छात्र को सीखने की प्रक्रिया के केंद्र में रखती है। यह छात्रों को सक्रिय रूप से चर्चाओं में भाग लेने और अपने विचारों को साझा करके अपनी शिक्षा का स्वामित्व लेने का अधिकार देता है।
  • उदाहरण: प्राथमिक विज्ञान कक्षा में, छात्र सौर मंडल के बारे में चर्चा में संलग्न होते हैं, ग्रहों और अंतरिक्ष अन्वेषण के बारे में अपनी जिज्ञासा और प्रश्न साझा करते हैं।

2. विचारों की प्रस्तुति (Presentation of Ideas):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाओं के माध्यम से, छात्रों को अपने विचारों और दृष्टिकोणों को अपने साथियों के सामने प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है। यह आत्म-अभिव्यक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है।
  • उदाहरण: एक साहित्य कक्षा में, छात्र एक उपन्यास के विषयों पर चर्चा करते हैं, प्रत्येक छात्र पाठ के प्रतीकवाद की अपनी व्याख्या प्रस्तुत करता है।

3. ज्ञान का आदान-प्रदान (Knowledge Exchange):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाएँ छात्रों के बीच विचारों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाती हैं। वे एक-दूसरे के दृष्टिकोण और अनुभवों से सीखते हैं, जिससे विषय-वस्तु के बारे में उनकी समझ समृद्ध होती है।
  • उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, छात्र एक ऐतिहासिक घटना पर चर्चा करते हैं, घटना के महत्व के बारे में व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए अपने ज्ञान को एकत्रित करते हैं।

4. स्व-प्रकाशन का अवसर (Self-Publishing Opportunity):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाओं के माध्यम से, छात्र अपने विचारों और विचारों को प्रभावी ढंग से “प्रकाशित” करते हैं, जिससे वे अपने साथियों के लिए सुलभ हो जाते हैं। इससे उनमें सीखने की उपलब्धि और स्वामित्व की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: एक प्रौद्योगिकी कक्षा में, छात्र अपनी भविष्यवाणियाँ और अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करते हुए, समाज पर उभरती प्रौद्योगिकियों के प्रभाव पर चर्चा करते हैं।

5. तार्किक विचारों का आदान-प्रदान (Exchange of Logical Ideas):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाएँ तार्किक और सुसंरचित विचारों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करती हैं। उन्हें छात्रों से आलोचनात्मक ढंग से सोचने और अपने विचारों को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करने की आवश्यकता होती है।
  • उदाहरण: जलवायु परिवर्तन के बारे में एक बहस में, छात्र वैज्ञानिक साक्ष्य और शोध के आधार पर तार्किक तर्क प्रस्तुत करते हैं।

6. संज्ञानात्मक कौशल का विकास (Development of Cognitive Skills):

  • व्याख्या: चर्चा पद्धति छात्रों की तर्क शक्ति, सोचने की क्षमता और कल्पनाशीलता को बढ़ाती है। यह उन्हें अपनी बौद्धिक क्षमताओं का पता लगाने और उनका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • उदाहरण: एक दर्शन कक्षा में, छात्र नैतिक दुविधाओं के बारे में चर्चा में संलग्न होते हैं, अपने तर्क और नैतिक दृष्टिकोण को चुनौती देते हैं।

7. आलोचनात्मक सोच का विकास (Critical Thinking Development):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाएँ आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देती हैं क्योंकि छात्र जानकारी का मूल्यांकन, विश्लेषण और संश्लेषण करते हैं, जिससे जटिल विषयों की गहरी समझ को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: एक राजनीति विज्ञान सेमिनार में, छात्र नीतिगत मुद्दों और उनके निहितार्थों की आलोचनात्मक जांच करते हैं, और सूचित निर्णय लेने को प्रोत्साहित करते हैं।

8. सामूहिक निर्णय लेना (Collective Decision-Making):

  • व्याख्या: चर्चा पद्धति सामूहिक रूप से निर्णय लेने की आदत विकसित करती है, सहयोग और टीम वर्क को प्रोत्साहित करती है।
  • उदाहरण: विद्यार्थी परिषद की बैठक में, छात्र स्कूल की पहल पर चर्चा करते हैं और निर्णय लेते हैं, जिससे विविध इनपुट और सामूहिक निर्णय लेने की अनुमति मिलती है।

9. स्वाध्याय की आदत (Habit of Self-Study):

  • स्पष्टीकरण: चर्चाओं में शामिल होने से छात्रों को स्व-अध्ययन के माध्यम से विषयों में गहराई से उतरने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे स्वतंत्र शिक्षा को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: एक शोध-उन्मुख कक्षा में, छात्र शोध निष्कर्षों पर चर्चा करते हैं और संबंधित विषयों को और अधिक जानने के लिए स्वतंत्र अध्ययन में संलग्न होते हैं।

10. लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास (Development of Democratic Values):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा पद्धति कक्षा में लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास को बढ़ावा देती है, विविध दृष्टिकोणों के प्रति सम्मान और खुले संवाद को बढ़ावा देती है।
  • उदाहरण: नागरिक शास्त्र की कक्षा में, छात्र सहिष्णुता और सम्मानजनक प्रवचन के महत्व पर जोर देते हुए लोकतंत्र के सिद्धांतों पर चर्चा करते हैं।

आजीवन सीखने के लिए लाभ (Benefits for Lifelong Learning): चर्चा पद्धति के लाभ कक्षा से परे तक फैले हुए हैं, जो छात्रों को महत्वपूर्ण सोच, संचार और सहयोग कौशल से लैस करते हैं जो उनके भविष्य के करियर और नागरिक जुड़ाव में सफलता के लिए आवश्यक हैं। छात्र-केंद्रित शिक्षा और सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देकर, यह विधि छात्रों को आजीवन सीखने वाला और सूचित, संलग्न नागरिक बनने का अधिकार देती है।

चर्चा के प्रकार

(types of discussion).

चर्चाएँ बहुमुखी हैं और उनके उद्देश्य और संदर्भ के आधार पर विभिन्न रूप ले सकती हैं। यहां कुछ सामान्य प्रकार की चर्चाएं दी गई हैं:

यहां प्रत्येक प्रकार के उदाहरणों के साथ विभिन्न प्रकार की चर्चाओं वाली एक तालिका दी गई है:

Type of Discussion Description Example
Socratic Discussion इसमें आलोचनात्मक सोच और विश्वासों और धारणाओं की आत्म-परीक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए खुले प्रश्नों को शामिल किया गया है। सुकराती (Socratic) पूछताछ का उपयोग करके न्याय की अवधारणा पर चर्चा करना।
Panel Discussion विविध दृष्टिकोण वाले विशेषज्ञों या व्यक्तियों का एक समूह किसी विशिष्ट विषय पर अंतर्दृष्टि साझा करता है, अक्सर दर्शकों के सवालों के साथ। वैज्ञानिकों का एक पैनल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा कर रहा है।
Debate दो विरोधी पक्ष दर्शकों को समझाने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हैं। अनिवार्य टीकाकरण नीतियों के पक्ष और विपक्ष पर बहस।
Fishbowl Discussion एक छोटा समूह केंद्र में किसी विषय पर चर्चा करता है, जबकि अन्य अवलोकन करते हैं। प्रतिभागी आंतरिक और बाहरी सर्कल के बीच स्विच कर सकते हैं। Fshbowl प्रारूप में मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के प्रभाव की खोज।
Roundtable Discussion गोलाकार मेज पर बैठे प्रतिभागियों के बीच सहयोगात्मक बातचीत का उपयोग अक्सर विचार-मंथन या निर्णय लेने के लिए किया जाता है। कार्यस्थल विविधता में सुधार के लिए रणनीतियों पर एक गोलमेज चर्चा।
Focus Group किसी उत्पाद, सेवा या अवधारणा पर गुणात्मक अंतर्दृष्टि इकट्ठा करने के लिए छोटे समूह की चर्चा, आमतौर पर बाजार अनुसंधान में उपयोग की जाती है। नए स्मार्टफोन डिज़ाइन पर फीडबैक इकट्ठा करने के लिए एक फोकस समूह का संचालन करना।
Seminar Discussion शैक्षिक सेटिंग में प्रशिक्षक या विशेषज्ञ के नेतृत्व में संरचित चर्चा, अक्सर विशिष्ट पाठ्यक्रम विषयों पर केंद्रित होती है। किसी साहित्यिक कृति के विषयों पर सेमिनार में चर्चा में शामिल होना।
Town Hall Meeting सार्वजनिक सभाएँ जहाँ समुदाय के सदस्य स्थानीय नेताओं या अधिकारियों के साथ मुद्दों पर चर्चा करते हैं, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। सार्वजनिक परिवहन के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए एक टाउन हॉल बैठक।
Brainstorming Session प्रतिभागी स्वतंत्र सोच वाले माहौल में रचनात्मक विचार और समाधान उत्पन्न करते हैं, अक्सर बिना किसी निर्णय के। नवोन्मेषी विपणन रणनीतियों पर विचार-मंथन सत्र आयोजित करना।
Peer Review Discussion व्यक्ति अक्सर शैक्षणिक या व्यावसायिक सेटिंग में एक-दूसरे के काम, जैसे शोध पत्र या परियोजनाओं पर रचनात्मक प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं। स्नातक सेमिनार में शोध पत्रों की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक सहकर्मी समीक्षा चर्चा।
Casual Conversation शौक, वर्तमान घटनाओं या व्यक्तिगत अनुभवों जैसे विभिन्न विषयों पर व्यक्तियों के बीच अनौपचारिक रोजमर्रा की चर्चा। सप्ताहांत की योजनाओं के बारे में दोस्तों के साथ अनौपचारिक बातचीत करना।
Problem-Solving Discussion प्रतिभागी सहयोगात्मक रूप से किसी विशिष्ट समस्या का विश्लेषण करते हैं, संभावित समाधानों की पहचान करते हैं और निर्णय लेते हैं। एक विनिर्माण कंपनी में आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक समस्या-समाधान चर्चा।
Strategic Planning Discussion मिशन, विजन और कार्य योजनाओं पर विचार करते हुए संगठनों या परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक लक्ष्यों और उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। एक गैर-लाभकारी संगठन की भविष्य की दिशा तय करने के लिए एक रणनीतिक योजना चर्चा।
Conflict Resolution Discussion प्रतिभागी सामान्य आधार की तलाश में, संघर्षों, असहमतियों या विवादों को संबोधित करने और हल करने के लिए एक साथ आते हैं। कार्यस्थल पर टीम के दो सदस्यों के बीच संघर्ष समाधान चर्चा में मध्यस्थता करना।
Ethical Dilemma Discussion जटिल नैतिक मुद्दों की पड़ताल करता है, जिससे प्रतिभागियों को विभिन्न नैतिक दृष्टिकोणों और संभावित समाधानों पर विचार करने की आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य देखभाल निर्णय लेने में एआई के उपयोग के बारे में एक नैतिक दुविधा चर्चा में संलग्न होना।
Book Club Discussion सदस्य किसी चयनित पुस्तक पर चर्चा करने के लिए एकत्रित होते हैं, अपनी व्याख्याओं, राय और पढ़ने से प्राप्त अंतर्दृष्टि को साझा करते हैं। एक Classical उपन्यास पर एक पुस्तक क्लब चर्चा, उसके विषयों और पात्रों का विश्लेषण।
Case Study Discussion इसमें अक्सर शैक्षणिक या व्यावसायिक संदर्भों में निष्कर्ष निकालने और सिफारिशें करने के लिए वास्तविक या काल्पनिक परिदृश्यों का विश्लेषण शामिल होता है। बाज़ार संकट के प्रति व्यवसाय की प्रतिक्रिया पर एक केस अध्ययन चर्चा आयोजित करना।

ये उदाहरण बताते हैं कि शैक्षणिक और व्यावसायिक वातावरण से लेकर रोजमर्रा की बातचीत और सामुदायिक व्यस्तताओं तक, प्रत्येक प्रकार की चर्चा को विभिन्न सेटिंग्स और संदर्भों में कैसे लागू किया जा सकता है।

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चर्चा पद्धति की प्रभावशीलता बढ़ाना: मुख्य युक्तियाँ

(enhancing the effectiveness of the discussion method: key tips).

शैक्षिक सेटिंग्स में चर्चा पद्धति को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना और सुविधा की आवश्यकता होती है। ये युक्तियाँ यह सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं कि चर्चाएँ आकर्षक, उद्देश्यपूर्ण और समावेशी हों। आइए चर्चा पद्धति को अधिक जानकारीपूर्ण बनाने के लिए उदाहरणों और अंतर्दृष्टियों के साथ इन युक्तियों को विस्तार से देखें।

1. पर्याप्त तैयारी करना (Preparing Adequately):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा शुरू होने से पहले व्यापक तैयारी आवश्यक है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि छात्रों को विचाराधीन विषय से संबंधित प्रासंगिक पठन सामग्री और संसाधनों तक पहुंच प्राप्त हो।
  • उदाहरण: जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने वाली विज्ञान कक्षा में, शिक्षक छात्रों को एक सुविज्ञ चर्चा की तैयारी के लिए लेख, वीडियो और वैज्ञानिक रिपोर्ट प्रदान कर सकता है।

2. सीमाएँ निर्धारित करना (Setting Boundaries):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा विषय के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमाएँ फोकस बनाए रखने और अप्रासंगिक या असंबंधित चर्चाओं में विचलन को रोकने में मदद करती हैं। शिक्षक को चर्चा को सही राह पर बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन करना चाहिए।
  • उदाहरण: इतिहास की कक्षा में किसी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना पर चर्चा करते हुए, शिक्षक चर्चा के दायरे को सीमित करने के लिए समय अवधि, प्रमुख आंकड़े और ऐतिहासिक संदर्भ निर्दिष्ट करके सीमाएँ निर्धारित करता है।

3. आयु-उपयुक्त विषय (Age-Appropriate Topics):

  • स्पष्टीकरण: छात्रों की उम्र और संज्ञानात्मक विकास स्तर के लिए उपयुक्त विषयों का चयन करना महत्वपूर्ण है। चुनी गई समस्या उनके अनुभवों से मेल खानी चाहिए और तुरंत इसकी प्रासंगिकता को उजागर करना चाहिए।
  • उदाहरण: प्राथमिक विद्यालय की भूगोल कक्षा में, चर्चा का विषय स्थानीय पर्यावरण और उनके दैनिक जीवन के लिए इसका महत्व हो सकता है।

4. भागीदारी को प्रोत्साहित करना (Encouraging Participation):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा पद्धति की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, यह आवश्यक है कि सभी छात्र सक्रिय रूप से भाग लें। शिक्षकों को एक सहायक वातावरण बनाना चाहिए जहां शर्मीले या अंतर्मुखी छात्र भी योगदान देने के लिए प्रोत्साहित महसूस करें।
  • उदाहरण: एक भाषा कला कक्षा में, शिक्षक पूरी कक्षा के साथ चर्चा करने से पहले प्रत्येक छात्र को जोड़े में अपने विचार साझा करने का अवसर देने के लिए “थिंक-पेयर-शेयर” जैसी रणनीतियों को नियोजित कर सकता है।

5. वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन (Objective Evaluation):

  • स्पष्टीकरण: चर्चा का मूल्यांकन निष्पक्षतापूर्वक एवं बिना किसी पूर्वाग्रह के किया जाना चाहिए। मूल्यांकन मानदंड पहले से स्थापित किए जाने चाहिए, और प्रतिक्रिया रचनात्मक और निष्पक्ष होनी चाहिए।
  • उदाहरण: पर्यावरण संरक्षण के बारे में बहस में, मूल्यांकन मानदंड में तर्कों की स्पष्टता, उद्धृत साक्ष्य और विरोधी दृष्टिकोण के साथ सम्मानजनक जुड़ाव शामिल हो सकते हैं।

प्रभावी चर्चा के लाभ (Benefits of Effective Discussion):

  • जुड़ाव (Engagement): अच्छी तरह से तैयार और केंद्रित चर्चाएँ छात्रों के लिए अधिक आकर्षक होती हैं, सक्रिय भागीदारी और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करती हैं।
  • प्रासंगिकता (Relevance): आयु-उपयुक्त विषय जो छात्रों के अनुभवों से मेल खाते हैं, उन्हें चर्चा की प्रासंगिकता को तुरंत पहचानने में मदद करते हैं।
  • समावेशिता (Inclusivity): सभी छात्रों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने से यह सुनिश्चित होता है कि विविध दृष्टिकोणों पर विचार किया जाता है, जिससे विचारों के समृद्ध आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है।
  • वस्तुनिष्ठ शिक्षण (Objective Learning): निष्पक्ष मूल्यांकन और रचनात्मक प्रतिक्रिया छात्रों के संचार, आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान में वृद्धि में योगदान करती है।
  • आजीवन कौशल (Lifelong Skills): प्रभावी चर्चाएँ छात्रों को उनके भविष्य के प्रयासों में प्रभावी संचार, सहयोग और सूचित निर्णय लेने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष: शैक्षिक सेटिंग्स में चर्चा पद्धति की प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिए यहां दी गई युक्तियाँ आवश्यक हैं। इन दिशानिर्देशों का पालन करके, शिक्षक एक ऐसा वातावरण बना सकते हैं जहाँ चर्चाएँ न केवल आकर्षक और समावेशी हों बल्कि छात्रों के बौद्धिक और व्यक्तिगत विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दें। आलोचनात्मक सोच, संचार कौशल और जटिल विषयों की गहरी समझ को बढ़ावा देने के लिए चर्चाएँ एक शक्तिशाली उपकरण बन जाती हैं।

  • निरंतर परिवर्तन और सूचना अधिभार की विशेषता वाली दुनिया में, शिक्षण की चर्चा पद्धति छात्रों में आवश्यक कौशल विकसित करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बनी हुई है। यह सक्रिय शिक्षण, आलोचनात्मक सोच और प्रभावी संचार को बढ़ावा देता है, जो 21वीं सदी में सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। चर्चा पद्धति को अपनाकर, शिक्षक अपने छात्रों को आजीवन सीखने वाले, सूचित नागरिक और एक गतिशील और हमेशा विकसित होने वाले समाज में सक्रिय योगदानकर्ता बनने के लिए सशक्त बनाते हैं।
  • Difference between Unit Plan and Lesson Plan in Hindi (PDF)
  • Difference Between Approach Strategy And Method in Hindi
  • Problem Solving Method In Social Science In Hindi (Pdf)

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12th notes in hindi

समस्या समाधान विधि क्या है problem solving method in hindi समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं

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problem solving method in hindi in teaching समस्या समाधान विधि क्या है , समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं ?

समस्या समाधान विधि क्या है ? इसमें कौन-से पद होते हैं ? इसके गुण-दोष लिखिये। What is problem solving method ? What are the steps involved in it ? Write its merits and demerits. उत्तर- रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या-समाधान विधि (Problem Solving Method in Chemistry Teaching) – इस प्रणाली का जन्म प्रयोजनवाद के फलस्वरूप हुआ। इसका आधार ह्यरिस्टिक विधि की तरह है। सबसे पहले अध्यापक कक्ष में बालकों के सामने कोई समस्या समाधान के लिए रखता है। यह समस्या उनके पाठ से सम्बन्धित होती है। इसके बाद विद्यार्थी मिलकर वाद-विवाद के द्वारा उस समस्या का हल ढूढने की कोशिश करते हैं। वे एक वैज्ञानिक की भाँति तरह-तरह के प्रयास करते हैं और जब तक उसका समाधान नहीं खोज लेते हैं, तब तक कोशिश करते रहते हैं। वुडवर्थ (Woodworth) – “समस्या समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं।” जार्ज जॉनसन (George Johnson) – “मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का सर्वोत्तम ढंग वह है जिसके द्वारा मस्तिष्क के समक्ष वास्तविक समस्याएँ उत्पन्न की जाती हैं और उसको उनका समाधान निकालने के लिए अवसर तथा स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।” गेट्स तथा अन्य (Gates and others) – “समस्या समाधान, शिक्षण का एक रूप है जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है।‘‘ स्किनर (Skinner) –  “समस्या समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं।‘‘ समस्या समाधान विधि के सोपान या चरण-अध्यापक को समस्या समाधान विधि में कुछ विशेष क्रमबद्ध प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये निम्न हैं- (प) सपस्या का चयन करना (Selection of Problem) – सर्वप्रथम शिक्षक को विज्ञान के विषय में से उन प्रकरणों का चयन करना पड़ेगा जो समस्या विधि की सहायता से पढ़ाये जा सकते हैं, क्योंकि सभी प्रकरण (Topic) समस्या समाधान विधि से नहीं पढ़ाये जा सकते। (पप) समस्या से सम्बन्धि तरयों का एकत्रीकरण एवं व्यवस्था (Collection & Organisation of Facts Regarding Problem) — समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करना भी अति आवश्यक है। यदि साधन ही अस्पष्ट होंगे तो हम इस विधि से जितना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त नहीं कर सकेंगे। (पपप) समस्या का महत्व स्पष्ट करना (Classifying the Importance of the Problem) — यदि विद्यार्थियों को समस्या के महत्व का पता नहीं होगा तो वे समस्या में कभी भी रुचि नहीं लेंगे। विद्यार्थियों का समस्या में रुचि न लेने से समस्या का कभी भी सही हल नहीं निकल सकता। (पअ) तथ्यों की जाँच तथा संभावित हलों का निर्णय (Evaluation of Facts and Decision about Possible Solutions) – अब समस्या से सम्बन्धित तथ्यों की जाँच की जाती है और यह पता लगाया जाता है कि उनमें से कौन से तथ्य समस्या के अनुरुप हैं और किन तथ्यों को अस्वीकृत किया जा सकता है। तथ्यों की जाँच के उपरान्त ही समस्या का हल निकालने का प्रयत्न किया जाता है। यदि किसी समस्या का हल कई प्रकार से निकलता है तो शिक्षक और विद्यार्थी दोनों मिलकर सबसे सही हल ढूंढने का प्रयत्न करेंगे। तथ्यों का आलोचनात्मक विश्लेषण, समालोचन तथा विचार-विमर्श किया जायेगा और तत्पश्चात् निष्कर्ष पर पहुंचा जायेगा। (अ) सामान्यीकरण एवं निष्कर्ष निकालना (Generalçation and Conclusion) – सामान्यीकरण से निष्कर्षों के सत्यापन में सहायता मिलती है। इसके साथ ही यह जानने के लिए प्रेरणा मिलती है कि ये निष्कर्ष प्रयोग में लाये जा सकते हैं या नहीं। (अप) निष्कर्षों का मूल्यांकन एवं समस्या का लेखा-जोखा बनाना (Evaluation of Result & Preparing Records of the Problem) – अन्त में समस्या के समाधान हेतु विद्यार्थी व शिक्षक जिस निष्कर्ष या परिणाम पर पहुंचते हैं उसका मूल्यांकन किया जाता है। समस्या समाधान विधि की विशेषताएँ- (प) सूझबूझ या अन्तर्दृष्टिपूर्ण (Insightful) – यह विधि सूझबूझपूर्ण वाली विधि है क्योंकि इसमें चयनात्मक और उचित अनुभवों का पुनर्गठन सम्पूर्ण हल में किया जाता है। (पप) सृजनात्मक (Creative) – इस विधि में विचारों आदि को पुनर्गठित किया जाता है, इसलिए इस विधि को सृजनात्मक माना जाता है। (पपप) चयनात्मक (Selective) – इस विधि की प्रक्रिया इस दृष्टि से चयनात्मक है कि सही हल ढूंढने के लिए चयन तथा उपयुक्त अनुभवों को स्मरण किया जाता है। (पअ) आलोचनात्मक (Critical) – यह विधि आलोचनात्मक है क्योंकि यह अनुपात या प्रयोगात्मक हल का पर्याप्त मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है। (अ) लक्ष्य-केन्द्रित विधि (Goal – oriented Method) – इस विधि का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है । लक्ष्य ही बाधा को दूर करना होता है। समस्या समाधान विधि के गुण- (प) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific Attitude) – विधि से विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। वे मुद्रित पाठों का प्रधानकरण नहीं करते और पुस्तकीय ज्ञान पर आश्रित नहीं रहते। (पप) जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सहायक (Helpful in Solving the Dattlems of Life) – प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है। विद्यालय में समस्याओं के समाधान के प्रशिक्षण प्राप्त करने से विद्यार्थियों में ऐसे सोशल व अनुभव आ जाते हैं जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं। (पपप) तथ्यों का संग्रह और व्यवस्थित करना (Collection and Organisation of Data) – इस विधि से विद्यार्थी तों को एकत्रित करना सीखते हैं तथा इन एकत्रित तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात् उन्हें व्यवस्थित करना भी सीखते हैं। (पअ) अनुशासन को बढ़ावा (Collection and Organisation of Data) –  इस विधि से अनुशासन-प्रियता को बढ़ावा मिलता है। प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का हल निकालने में ही जुटा रहता है। अतः उसके पास अनुशासन भंग करने का अवसर ही नहीं होता। (अ) स्वाध्याय की आदत का निर्माण (Formation of Habit of Self-Study) – इस विधि से बालकों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है जो आगे जीवन में बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। (अप) स्थायी ज्ञान (Permanent Knowledge) – इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान विद्यार्थियों के पास स्थायी रूप से रहता है, क्योंकि विद्यार्थियों ने स्वयं समस्या का समाधान ढूंढकर इस ज्ञान को अर्जित किया होता है। (अपप) पथ-प्रदर्शन (Guidance) – इस विधि से शिक्षक और शिक्षार्थी को एक-दूसरे के निकट आने का अवसर मिलता है। इस विधि में शिक्षक के पथ-प्रदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। समस्या का समाधान ढूंढने के लिए विद्यार्थी समय-समय पर शिक्षक की सहायता लेता है। (अपपप) विभिन्न गुणों का विकास (Development of Various Qualities) – समस्या समाधान विधि बालकों में सहनशीलता (च्ंबजपमदबम), उत्तरदायित्व को भावना (Sense of Responsibility), व्यवहारिकता (Practicability), व्यापकता (Broad Mindedness), गंभीरता (Seriousness), दूरदर्शिता (Farsightedness) आदि अनेक गुणों को जन्म देती है। समस्या समाधान विधि के दोष (प) संदर्भ सामग्री का अभाव (Lack of Reference Materials)- इस विधि में विद्यार्थी को बहुत अधिक संदर्भ सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जो आसानी से उपलब्ध नहीं होती। कई ऐसी पुस्तकें समस्या का समाधान ढूंढने में आवश्यक होती हैं जो प्रायः विद्यालय के पुस्तकालय में नहीं होती। (पप) चयनित अंशों का अध्ययन (Study of Selected Portions) – विद्यार्थी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन न कर केवल उन्हीं अंगों का अध्ययन करते हैं जो उनकी चुनी हुई समस्या से सम्बन्धित है। (पपप) नीरस शैक्षणिक वातावरण (Dull Educational Environment) – इस विधि का कक्षा में अधिक प्रयोग होने से सम्पूर्ण शैक्षणिक वातावरण में नीरसता आ जाती है। जब विद्यार्थी किसी एक समस्या पर कई दिन या कई सप्ताह कार्य करते है तो उस समस्या से उनकी रुचि समाप्त हो जाती है क्योंकि बालक स्वभाव से ही विभिन प्रकार के कार्यों में भाग लेना चाहते हैं। (पअ) निर्मित समस्याओं का वास्तविक जीवन की समस्याओं से तालमेल का अभाव (Lack of Co-ordination between Created Problems and Actual Problems) – कई बार कक्षा में निर्मित समस्यायें वास्तविक जीवन की समस्याओं से नहीं खाती जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहने । (अ) प्राथमिक कक्षाओं के लिए अनुपयुक्त (Not Fit for Primary Classes) – यह विधि प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि इन कक्षाओं के विद्यार्थियों का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वह समस्या का चुनाव कर सकें तथा समस्याओं का हल निकाल सकें। (अप) समस्या का चुनाव एक कठिन कार्य-रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या समाधान विधि का उपयोग इसलिए भी दोषपूर्ण या सीमित है क्योंकि समस्या का चुनाव करना बहुत ही कठिन कार्य होता है। प्रत्येक विद्यार्थी या शिक्षक समस्या का चुनाव नहीं कर सकता। (अपप) संतोषजनक परिणामों का अभाव (Lack of Satisfactory Results) – इस विधि से प्रायः संतोषजनक परिणाम भी प्राप्त नहीं होते। कई बार विद्यार्थियों के मन में ऐसी बात आती है कि वह व्यर्थ ही समय नष्ट कर रहा है या जो परिणाम निकाला गया है उसका समस्या के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठता। (अपपप) अधिक समय खर्च होना (Requires More Time) – इस विधि द्वारा समस्या के समाधान ढूंढने में विद्यार्थी का समय बहुत अधिक खर्च हो जाता है। इससे हमेशा यह भय बना रहता है कि पाठ्यक्रम पूरा होगा भी या नहीं। (पग) अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता (Experienced Teachers are Required) – रसायन विज्ञान शिक्षण में समस्या-समाधान विधि के प्रयोग के लिए कुशल, योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो कि समस्या का सावधानी से चुनाव कर सकें। लेकिन वास्तव में ऐसे गुणी शिक्षकों का अभाव ही रहता है। समस्या समाधान विधि के लिए सुझाव- 1. समस्या देने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समस्या बालको के मानसिक स्तर की हो तथा उनके अनुभवों पर आधारित हो। 2. पहले बालकों को सरल, फिर कठिन समस्या देनी चाहिए ताकि वे धीरे-धार सफलता प्राप्त करते हुए कार्य करें। 3. समस्या उनकी रुचि के अनुसार होनी चाहिए जो उनके पाठयक्रम के अन्तगत आती हो। 4. समस्या समाधान विधि का प्रयोग बड़ी कक्षाओं में ही ठीक प्रकार से हो सकता है। यदि हम समस्या को ठीक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें तो इससे मानसिक कुशलताओं, अभिवृत्तियों व आदेशों के विकास में सहायता मिलती है।

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Simple Guide to Problem-Solving Method of Teaching

You must be interested to know – What is the problem-solving method of teaching and how it works. We’ve explained its core principles, six-step process, and benefits with real-world examples.

Understand the Problem-Solving Method of Teaching

The basis of this modern teaching approach is to provide students with opportunities to face real-time challenges. It aims to help them understand how the concept behind a solution works in reality.

What is the Problem-Solving Method of Teaching?

The problem-solving method of teaching is a student-centered approach to learning that focuses on developing students’ problem-solving skills. In this method, students have to face real-world problems to solve.

They are encouraged to use their knowledge and skills to provide solutions. The teacher acts as a facilitator, providing guidance and support as needed, but ultimately the students are responsible for finding their solutions.

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5 Most Important Benefits of Problem-Solving Method of Teaching

The new way of teaching primarily helps students develop critical thinking skills and real-world application abilities. It also promotes independence and self-confidence in problem-solving.

The problem-solving method of teaching has several benefits. It helps students to:

#1 Enhances critical thinking

By presenting students with real-world problems to solve, the problem-solving method of teaching forces them:

– To think critically about the situation, and – To come up with their solutions.

This process helps students develop critical thinking skills essential for success in school and life.

#2 Fosters creativity

The problem-solving method of teaching encourages students to be creative in their problem-solving approach. There is often no one right answer to a problem, so students are free to come up with their unique solutions. This process helps students think creatively, an important skill in all areas of life.

#3 Encourages real-world application

The problem-solving method of teaching helps students learn how to apply their knowledge to real-world situations. By solving real-world problems, students can see:

– How their knowledge is relevant to their lives, – And, the world around them.

This helps students to become more motivated and engaged learners.

#4 Builds student confidence

When students can successfully solve problems, they gain confidence in their abilities. This confidence is essential for success in all areas of life, both academic and personal.

#5 Promotes collaborative learning

The problem-solving method of teaching often involves students working together to solve problems. This collaborative learning process helps students to develop their teamwork skills and to learn from each other.

Know 6 Steps in the Problem-Solving Method of Teaching

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The problem-solving method of teaching typically involves the following steps:

Step 1: Identifying the problem

The first step is problem identification which students will be working on. This requires students to do the following:

– By presenting students with a real-world problem, or – By asking them to come up with their problems.

Step 2: Understanding the problem

Once students have identified the problem, they need to understand it fully. This may involve:

– Breaking the problem down into smaller parts, or – Gathering more information about the problem.

Step 3: Generating solutions

Once students understand the problem, they need to generate possible solutions. They have to do either of the following:

– By brainstorming, or – By exercising problem-solving techniques such as root cause analysis or the decision matrix.

Step 4: Evaluating solutions

Students need to evaluate the pros and cons of each solution before choosing one to implement.

Step 5: Implementing the solution

Once students have chosen a solution, they need to implement it. This may involve taking action or developing a plan.

Step 6: Evaluating the results

Once students have implemented the solution, they must evaluate the results to see if it was successful.

If the solution fails the expectations, students should re-run step 3 and generate new solutions.

Find Out Examples of the Problem-Solving Method of Teaching

Here are a few examples of how the problem-solving method of teaching applies to different subjects:

  • Math: Students face real-world problems such as budgeting for a family or designing a new product. Students would then need to use their math skills to solve the problem.
  • Science: Students perform a science experiment or research on a scientific topic to invent a solution to the problem. Students should then use their science knowledge and skills to solve the problem.
  • Social studies: Students analyze a historical event or current social issue and devise a solution. After that, students should exercise their social studies knowledge and skills to solve the problem.

How to Use Problem-Solving Methods of Teaching

Here are a few tips for using the problem-solving method of teaching effectively:

  • Choose problems that are relevant to students’ lives and interests.
  • Select those problems that are challenging but achievable.
  • Provide students with ample resources such as books, websites, or experts to solve the problem.
  • Motivate them to work collaboratively and to share their ideas.
  • Be patient and supportive. Problem-solving can be a challenging process, but it is also a rewarding one.

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How to Choose: Let’s Draw a Comparison

The following table compares the different problem-solving methods:

MethodDescriptionProsCons
The teacher presents information to students who then complete exercises or assignments to practice the information.– Simple and easy-to-follow– Can be passive and boring for students
Students are presented with real-world problems to solve. They are encouraged to use their knowledge and skills to deliver solutions.– Promotes active learning– Can be challenging for students
Students are asked to investigate questions or problems. They are encouraged to gather evidence and come up with their conclusions.– Encourages critical thinking– Can be time-consuming

Which Method is the Most Suitable?

The most suitable way of teaching will depend on many factors such as the following:

– Subject matter, – Student’s age and ability level, and – Teacher’s preferences.

However, the problem-solving method of teaching is a valuable approach. It can be used in any subject area and with students of all ages.

Here are some additional tips for using the problem-solving method of teaching effectively:

  • Differentiate instruction. Not all students learn at the same pace or in the same way. Teachers can differentiate instruction to meet the needs of all learners by providing different levels of support and scaffolding.
  • Use formative assessment. Formative assessment helps track students’ progress and identify areas where they need additional support. Teachers can then use this information to provide students with targeted instruction.
  • Create a positive learning environment. Students need to feel safe and supported to learn effectively. Teachers can create a positive learning environment by providing students with opportunities for collaboration. They can celebrate their successes and create a classroom culture where mistakes are seen as learning opportunities.

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Some Unique Examples to Refer to Before We Conclude

Here are a few unique examples of how you incorporate the problem-solving method of teaching with different subjects:

  • English: Students analyze a grammar problem, such as a poem or a short story, and share their interpretation.
  • Art: Students can get a task to design a new product or to create a piece of art that addresses a social issue.
  • Music: Students write a song about a current event or create a new piece of music reflecting their cultural heritage.

Before You Leave

The problem-solving method of teaching is a powerful tool that can help students develop the skills they need to succeed in school and life. By creating a learning environment where students are encouraged to think critically and solve problems, teachers can help students to become lifelong learners.

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